मोहन का intellectuals की दुनिया में प्रवेश

मोहन का intellectuals की दुनिया में प्रवेश

मोहन लाल को कॉलेज में दाखिल हुए आज पूरा एक महिना हो चूका है। वो घर से पहली बार इतनी दूर अनजान लोगों के बीच में रह रहा है। अभी तक की जिन्दगी में वह अपने गावं के अलावा केवल अपनी नानी के गावं और अपनी बुआ जी के कसबे तक ही सीमित था। परन्तु पिछले एक महीने में अनजान लोगों के बीच में रहकर मोहन को एक और दुनिया का अनुभव हुआ जो भावनाओं के अलावा भी बहुत सारी चीजों से सम्बन्ध रखती है। मोहन की शर्मीली प्रवर्ती के कारण ज्यादा लोगों से गुफ्तगू नहीं हो पाई है। वो अभी अपनी कक्षा के चार पांच सहपाठियों से तथा हॉस्टल के कुछ साथियों से ही घुल मिल पाया है।
मोहन के लिए कॉलेज का वातावरण गावं के वातावरण से बिल्कुल विपरीत है। जहाँ उसके गावं में लोग सुबह- सुबह उठकर खेतों में टेहली मारने जाते है तथा मुहं में नीम की दातुल चबाये हुए अक्सर लोकल राजनीती में हो रही उठक-पठक की चर्चा में व्यस्त नजर आतें है। तो वही कॉलेज के बच्चों की शुरुआत सुबह सुबह ब्रश करते हुए अखबार पढने से होती है। हॉस्टल में बच्चें सुबह वार्तालाप की बजाय बाथरूम के लिए दौड-धुप मचाये फिरते है। हाँ ये भी है कि हॉस्टल में कुछ बच्चों की सुबह होती ही नहीं।
गावं में लोग सुबह सुबह चाय की चुस्की लेते हुए मौसम से लेकर आसपास के गावं की आधी झूठी उडती ख़बरों पर नमक मिर्च लगाना पसंद करते है। तो ऐसा ही कुछ हाल मोहन के हॉस्टल में अक्सर रात के समय होता है। रात के भोजन के बाद कुछ बच्चे मोहन के कमरे के सामने चौकड़ी जमा कर बैठ जातें है जिसमें रोजाना नए नए विषय पर अजीब किस्म की बहस (ज्यादातर मोहन की समझ से बाहर) सुनाई पड़ती है। इससे मोहन को पढाई करने तथा सोने में तकलीफ होती है तथा मन ही मन इन सब लोगों को तथा हॉस्टल की जिन्दगी को कोसता रहता है।
आज भी सभी लोगों ने मोहन के कमरे के बहार चौकड़ी जमानी शुरू कर दी है। मोहन का एक साथी जबरदस्ती मोहन को चौकड़ी में घसीट लेता है। तथा कल रात के विषय पर मोहन की राय जानने की जिद्द करने लगता है। उन्हें लगता है की मोहन गावं से आता है जिससे उसको वहां की जानकारी थोड़ी ज्यादा हो सकती है हालाँकि यहाँ कोई भी अपने आप में कम ज्ञानी नहीं है।  रोहिताश उससे पूछता है कि तुम्हे क्या लगता है कि गाववाले लोग छुआछुत, जात-पात में इतना विश्वास क्यों रखते है ? मोहन कुछ सोचे उससे पहले ही आशुतोष बोल पड़ा - अरे भाई क्योंकि वहाँ के लोग पढ़े लिखे नहीं है। और उसके बाद तीन चार हाँ हाँ की आवाज़ सुनाई पड़ती है।
मोहन कुछ गहरी सोच में पड़ जाता है तो वही बाकी लोग चर्चा में तरह तरह के तर्क पेश करते है। नवीन ने कहा - गावं में बड़ी जाती वाले लोग ज्यादा बलपूर्वक है। इससे उन्हें दलितों पर अपनी ताकत आजमाइश करने का मौका मिलता है और वो जाती प्रथा को जारी रखना चाहते है। सूरज के अनुसार गावं वालों को इस विषय पर सही जानकारी नहीं दी जाती और वो आज भी पुराने ख्यालों में ही जी रहे है। अजी एक महानुभाव के  अनुसार तो दलित तथा पिछड़ी जाती के लोग ही छुआछुत जैसी महामारी के लिए जिम्मेदार है। उसके अनुसार दान और भीख जैसे छोटे मोट प्रलोभन के कारण ये लोग जाति का बिल्ला अपने साथ लेकर घूमते रहते है। सभी लोग भारतीय गावों को छुआछुत की तराजू में तोल ही रहे थे कि प्रेम कमरे के अन्दर से चिल्लाता है। अरे जल्दी आओ - देखो क्या मस्त पटाका खडी है। और सभी लड़के एक दुसरे के ऊपर लथपथ हुए खिड़की से लड़की को देखने की कोशिश करते है। एक कहता है - अरे ये तो सिगरेट पी रही है वो भी दो लडको के साथ खड़े होकर।

रवि- अरे यार ये तो दो-दो के साथ मजे लुट रही है  सही माल है यार। एक बार मिल जाए तो जन्नत की सैर करा दूंगा।
मनीष- भाइयों कल अगर इसको सिगरेट पिलाने की बहाने देखना तुम्हारी भाभी ना बनाई तो मेरा नाम बदल देना।
मोहन लड़की देखकर चौंक जाता है ये तो उसकी क्लासमेट शैली है। ये वही एकमात्र लड़की है जिसने अभी तक मोहन से बात की है। मोहन ने बाकी लड़कों की तरह तो शैली को भद्दे शब्दों से नहीं तरासा। पर हाँ शैली को सिगरेट पीता देखकर उसे थोडा दुख जरुर हुआ। (मोहन ने लड़की को कभी सिगरेट पीते नहीं देखा था शायद इसीलिए)
पर जो भी हो दुसरे दिन मोहन जब क्लास जाता है तो शैली को देखकर थोडा असहज हो जाता है। शायद कल की घटना ने और हॉस्टल के लड़कों के बयानों ने शायद कुसंगति की संकाओ के कीड़े पैदा कर दिए है। शैली भी जल्दी जल्दी में मोहन से बात नहीं कर पाती। पर क्लास ख़त्म होते ही शैली दौड़ते हुए मोहन के पास आती है।
हाय मोहन ! क्या हुआ तुम्हे? आज थोड़े परेशान लग रहे हो ?
हाय! नहीं नहीं।  ऐसा कुछ नहीं है।
तो फिर आज सुबह हाय तक नहीं किया ?
अरे वो तो जल्दी जल्दी में ध्यान ही नहीं रहा।
अच्छा जी हमारे साथ शेयर नहीं करना। चलो कोई नहीं। जब तुम्हारा मन करे तो हमारे साथ शेयर कर लेना।
हाँ बिलकुल यार। तेरे साथ शेयर नहीं करूँगा तो किसके साथ करूँगा। आखिर तुम ही तो है जो मुझसे अच्छे से बात करती हो।
 अरे पगले ऐसा नहीं है। तू ही किसी से बात नहीं करता। क्लास ख़त्म होते ही तुझे तो बस हॉस्टल भागने की जल्दी रहती  है। क्या रखा है हॉस्टल में ऐसा ?
हाहा.. समझ नही आता क्लास के बाद क्या करू इसीलिए हॉस्टल चला जाता हूँ। तुम बताओ क्या चल रहा है आजकल?
बस एकदम बढ़िया। .... चल कैंटीन में कुछ खाने चलते है।
हाँ ठीक है चल। ये बता ये पकाऊ टीचर्स को तुम झेलती कैसे हो?
यार ये तो झेलना ही पड़ेगा। मैं तो ये लोग जो कुछ भी बोर्ड पर लिखते है बस वो ही लिखती रहती हूँ। इन नोट्स से एग्जाम में काफी हेल्प मिल जाती है। तू भी लिख लिया कर कुछ क्लास में। ये अपने पढाये हुए में से ही question पेपर बनाते है। 
हाँ ! वो तो है। पर यार लिखा ही नहीं जाता। इतना बोरिंग होता है। और इस मैडम की शोर्ट फॉर्म्स तो माशा अल्लाह है ...थोड़ी चुप्पी के बाद
अच्छा ये बता तू सिगरेट पीती है ?
हाँ पीती हूँ। तुझे कैसे पता? किसने बताया तुझे ?
अरे नहीं ! किसी ने बताया नहीं। वो कल शाम को जब तुम हॉस्टल के पीछे सिगरेट पी रही थी तब देखा था।
अच्छा ! तो तुम्हारा रूम उधर है।
हाँ, जहाँ तुम खडी थी ठीक उसके सामने।
लेकिन तुम इतनी हरानी से क्यों पूछ रहे हो ?

रवि मोहन के बगल से गुजरता है . मोहन क्लास ख़त्म हो गयी? भाई कभी हमारे साथ भी टहल लिया करो। ये कहता हुआ रवि वहां से निकल लेता है।

ये तुम्हारा दोस्त था ?
नहीं , हॉस्टल में रहता है। बस थोड़ी जान पहचान है।
कैसे कैसे लोग है ये। तू तो नहीं करता ना ये किसी के साथ?
नहीं नहीं। बिल्कुल नहीं। मैं तो ऐसे लड़कों से ज्यादा बात भी नहीं करता .
हम्म्म्म। ठीक है। अच्छा तूने बताया नहीं तू सिगरेट के बारे में इतनी हरानी से क्यों पूछ रहा था।
नहीं वो तो ऐसे ही पूछ रहा था। actual में शैली सिगरेट हेल्थ के लिए अच्छी नहीं होती।
ओह वाह ! लड़के सिगरेट पिए , लड़की छेड़े , शराब पीये सब करे . उनको कहने वाला कोई नहीं है। पर लड़कियों को जिसे देखों वो नसीहत देने चले आते है।
यार , तुम तो खामख्वाह गुस्सा हो रही हो।  मेरा तो बस ये कहना है कि सिगरेट दारु किसी के लिए भी अच्छा नहीं है। फिर चाहे लड़का हो या लड़की। 
क्यों अच्छी क्यों नहीं है ? मैं अपने पैसे की पीती हूँ किसी के बाप के पैसे से तो खरीदकर पी नहीं रही और ये मेरी अपना शरीर है। इसमें तुम कौन होते हो मुझे नसीहत देने वाले ?
ठीक है बाबा आगे से नहीं कहूँगा।
बात कहने या नहीं कहने की नहीं है। बात ऐसी सोच रखने की है।
क्या तुमने कभी किसी लड़के दोस्त को सिगरेट पीने से रोका ?
हाँ बिल्कुल रोका और इतना ही नहीं मैंने अपने पुरे वार्ड में सिगरेट पीने वालो को आने से मना कर रखा है।  देखो तुम ये gender issue को गलत तरीके से उठा रही हो।  इसको अच्छे मुद्दे के लिए उपयोग करना चाहिए ना की सिगरेट जैसे घटिया आदतों को छुपाने के लिए। सोचो अगर कोई रूडिवादी बाप अगर तुम्हे सिगरेट पीता देख लेता है तो घर जाकर क्या कहेगा - कॉलेज में तो लड़कियां सिगरेट पीती है। मैं नहीं चाहता मेरी बेटी भी उनके जैसी बने। बस उसको मिल गया बहाना अपनी बेटी को ना पढ़ाने का।
मोहन, चीज़ें इतनी आसान नहीं है। वो बाप तो कोई ना कोई बहाना निकाल ही लेगा जिसे अपनी बेटी को पढ़ाना नहीं है। सिगरेट नहीं तो कपडे और बॉयफ्रेंड जैसे मुद्दे के  सहारे रोक लेगा अपनी बेटी को। ये सोच ही तो ब्राह्मणवादी सोच है। ये बता लड़के तो खूब सिगरेट पीतें है फिर भी उन्हें क्यों नहीं रोका जाता कॉलेज जाने के लिए? केवल लड़कियों को ही क्यों रोका जाता है ?
देखो , समाज में प्रभुता किसकी है ? मर्दों की। अब जब उनकी प्रभुता है तो वो अपनी ठोंस तो निकालेंगे ही ना। इस सोच के खिलाफ हमें लड़ना है और ये सिगरेट जैसे मुद्दे हमें असली मुद्दों से भटका देते है। 
अरे बाप रे ! तुम्हे तो फिलोसोफेर होना चाहिए था। यहाँ इंजीनियरिंग में क्या कर रहे हो ? पर बेटा कुछ भी हो मैं तेरी बातों में नहीं आने वाली। पहले लडको की सिगरेट बंद करा फिर मैं अपनी सिगरेट बंद करुँगी। 
भैया ना तो मैं तुम्हारी सिगरेट बंद करा सकता और नाही लडको की।  मैं तो बस तुझे दोस्त के नाते सलाह दे रहा था .
रख अपनी सलाह को अपने पास और ये बता क्या लेगा ?
मेरी लिए एक ब्रेड ओम्लेट ले ले।
कुर्सी पर बैठते हुए - अच्छा सिगरेट के लिए तुम लोग इतना लड़ने के लिए उतारू रहते हो। ये बताओ कॉलेज में सिर्फ बॉयज हॉस्टल है। फिर तुमने हॉस्टल के लिए कभी आन्दोलन क्यों नहीं किया ?
ओ भैया आन्दोलनकारी। खाना खाने देगा। मुझे कुछ नहीं लेना देना इन आंदोलनों से। मुझे तो बस इंजीनियरिंग ख़त्म करनी है बस।
ये ही तो दिक्कत है इस देश के साथ। सब अपने अपने बारे में सोचते है।
मेरे बाप सुबह से प्रैक्टिकल करते करते जान चली गयी है। माफ़ कर दे मुझे। तेरे हॉस्टल के पीछे कभी सिगरेट नहीं पीउंगी। अब तो खुश ?
हाहाहा ..अरे सॉरी ..तू खा ले. चल मैं हॉस्टल चलता हूँ। 

Comments

Popular posts from this blog

पारो और चाय

खूनी उम्मीद