पारो और चाय


सिगरेट और चाय अनजान से अनजान इंसानों में भी एक छोटा सा रिश्ता बना देती है और ये रिश्ता चाहे कितना छोटा क्यों ना हो पर जिंदगी से हसीन यादें जोड़ देता है।  सलीम का भी ऐसा ही रिश्ता बना पारो से जब वो नौकरी की वयस्त रसहीन जिंदगी को हल्का बनाने के लिए दोपहर तीन बजे रोजाना अन्ना की टपरी पर आया करता। दोंनो चाय की चुस्की और सिगरेट के कश के साथ अपने बॉस की रोजाना अजीब किस्म की बुराईयाँ गिनाते तो अक्सर अपने निजी रिश्तों को भी चाय के नशे के कारण एक दूसरे के सामने बखेर देते।

                            अध्याय -१

आज पारो अपनी रूममेट का अध्याय चालू करती है।
पारो: यार मेरी रूममेट भी ना रोजाना अपने बॉयफ्रेंड पर गुस्सा करती रहती है। अगर वो एक दिन भी फोन ना करे ना तो बेचारे को अगले दिन सो सो मन (४० किलो) की गालियां खानी पड़ती है।

सलीम: हर किसी लड़के के नसीब में ये ही तो लिखा है। हर लड़की अपने बॉयफ्रेंड के साथ यही करती है।

पारो: ओए! मैं ऐसा बिलकुल भी नहीं करती। मैंने आकाश पर आजतक कोई जबरदस्ती नहीं की। उल्टा वो मुझे फोन कर-कर परेशान करता रहता है।  पता है... उसकी टूथब्रश तक मैं लाती हूँ।  उसको ना..शॉपिंग बिलकुल भी नहीं आती। मगर मैं उसके साथ जबरदस्ती नहीं करती कभी भी। उसके हाँ करने पर ही मैं उसे शॉपिंग ले जाती हूँ। हमारी रिलेशनशिप को आज पूरा डेढ़ साल हो चूका है और आजतक मैंने उससे कुछ नहीं माँगा।

सलीम: बस कर। ज्यादा शेखी ना मार। वैसे.. हर लड़की अपने बारे में यही कहती है।

पारो: हेलो जी। मैं तुझे रोतड़ू लगती हूँ। if you dont believe me then you can call Akash! कितना लक्की है वो। है ना यार!!

सलीम सिगरेट के बट को अपने पैरों से कुचलता है तो वही पारो उत्सुक निगाहों से सलीम को देखती हुई दोनों के चाय के कप को कूड़ेदान में डालती है। सलीम के कुछ ना कहने पर पारो हल्के जिद्दी स्वर में पूछती है - बताओ ना? क्या मैं तुम्हे बाकी लड़कियों जैसी लगती हूँ ?

सलीम ना में गर्दन हिलता है और पारो यईईए की आवाज़ निकालती हुई अपने ऑफिस की तरफ चली जाती है तो सलीम भी हल्की मुस्कराहट के साथ अपनी ऑफिस दी दुनिया में लोट जाता है।

क्या आपकी जिंदगी भी सलीम और पारो के मोड़ से गुजरी है? अपने अनुभव हमारे साथ साझा करे।
धन्यवाद!

सलीम हिंदुस्तानी  

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

खूनी उम्मीद