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Showing posts from September, 2015

पारो और चाय -- अध्याय -४

तीन दिन के लम्बे वीकेंड के बाद आज ऑफिस में अफरा तफरी मची हुई है। ईद की मुबारकें और DJ के शोर ने इतना काम पैदा कर दिया की दिन भर हाथ में कागज लिए बॉस के चारो तरफ दौड़ना पड़ रहा है। फिर भी ये काम कम्भख्त कम होने का नाम नहीं ले रहा। आज तो भईया फेसबुक चेक करने का मौका भी नहीं मिला। व्हाट्सप्प को छुए तो लगता है जमाना हो गया। खैर छोड़िये सलीम तो इन सब बातों को भुलाकर घडी की तरफ देखते हुए अन्ना की टपरी पर दौड़ पड़ता है।  वही पारो बेचारी अपने कामो में फसी हुई है। उसे अपने बॉस को मेल करना है। फाइल बड़ी होने के कारण अपलोड होने में टाइम ले रही है। पहले से लेट कही और लेट ना हो जाए ये सोचकर पारो अपना मेल अपनी दोस्त को बताती हुई चाय के लिए निकल पड़ती है। अन्ना की टपरी पर सलीम आज पहले से बैठे है और आज किसी कन्या के साथ गपशप में वयस्त है। पारो उसे देखती है और चहकती हुई अन्ना से सिगरेट और चाय लेती है। सलीम थोड़ी दुरी होने के कारन शायद पारो को अनदेखा करने की कोशिश करता है। पारो एक हाथ में चाय और दूसरे में सिगरेट पकडे हुए सलीम के पास खड़ी लड़की को जोर से हेलो बोलती है। और चाय रखकर बैठते हुए सलीम के हाथ से लाइटर

बॉम्बे हाई कोर्ट के दलित मज़दूरों की व्यथा-

बॉम्बे हाई कोर्ट के दलित मज़दूरों की व्यथा- बॉम्बे हाई कोर्ट में ६० से अधिक दलित मज़दूर रोजाना साफ़ सफाई का काम करते है। हर जगह की तरह हाई कोर्ट का साफ़ सफाई का काम भी रोजाना नियमित रूप से चलता है परन्तु यहाँ काम करने वाले लोगो का भविष्य केवल एक या दो साल के लिए टिका होता है। मतलब यू की इन लोगो को ठेकेदारो के अन्तर्गत काम करना होता है तथा ठेकेदारो के बदली होने के साथ साथ इन सफाई मज़दूरों को भी निकाल दिया जाता है। एक अत्यावशयक तथा नियमित रूप से होने वाले काम के कारण सफाईं के काम में कॉन्ट्रैक्ट मज़दूरों को रखना गैरकानूनी है। परन्तु हाई कोर्ट ने सब कानूनो की धज्जिया उड़ाते हुए मज़दूरों को अस्थाई तौर पर रखा हुआ है। केवल इतना ही नहीं ये सभी मज़दूर नौकरी से कम से कम मिलने वाली सुविधाओ से भी वंचित है। कॉन्ट्रैक्ट मज़दूरों को नियमानुसार मिलने वाली आधी सुविधाये भी इन्हे नहीं मिलती। बाकि सब सुविधाये पाना तो इनके लिए चाँद पर जाने के बराबर है। महिला कामगारों को जहाँ मासिक वेतन ५७०० रुपया मिलता है वही पुरुष कामगारों को ६२०० रुपया मिलता है। उच्चतम न्यायालय के अनुसार महिला तथा पुरुष दोनों को सामान काम के