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Showing posts from July, 2015

दोस्ती, सपने और एक टूटी फूटी सड़क

दोस्ती, सपने और एक टूटी फूटी सड़क एक टूटी फूटी सड़क पर दो साइकिलें धीरे धीरे चल रही है। जिनमे एक साईकिल रह रह कर चर -2 की आवाज़ निकालती है। और उन साइकिलों पर बैठे महानुभव लोग एक बेहद ही पेचीदा विषय 'सपने' पर बहस करने लगे जिससे साइकिलों की गति और धीमी पड़ गयी। दोनों दोस्तों ने सपने 'विषय' को अलग अलग अंदाज़ से पेश किया - सलीम - यार! कुछ बड़ा करने का मन है। बहुत बड़ा! देखना एक दिन तेरा ये दोस्त बड़ा आदमी बनेगा। आकाश: अरे! बस कर। यहाँ दसवी कैसे पास हो इसका ठिकाना नहीं है और एक ये भाईसाहब है जो बड़े बनेंगे। कल अगर मैं तुझे गणित की परीक्षा में नक़ल नहीं कराता तो जीरो तो पाता ही साथ में उस लकड़भग्गे (मास्टर का प्यारा नाम) से डंडे भी खाने पड़ते। सलीम: हाहाहा। आकाश तू कमाल का आदमी है यार। गणित की परीक्षा और तू... बस जिंदगी भर चिपके रहना इस गणित से।एक दिन मास्टर जीईईईई तो बन ही जाएगा। गहरे खड्डे की वजह से सलीम की साईकिल जरा लड़खड़ा गयी। इस पर आकाश की हंसी छूटती है। आकाश: हाहा। देखो जी बड़ा आदमी। अरे दिन में सपने देखते चलेगा तो यही हाल होगा। देख सलीम! तू मेरा

कला

कल्पना उस कलाकार की ऐसी कि दुनिया के दायरे में ना आ सकी। पढ़ा तो पूरी दुनिया ने उसे मगर कमबख्त किसी की समझ में ना आ सकी। खरीददार तो थे बहुत उसके मगर उसके लायक दाम इकट्ठे ना हो सके।

मेरी नई कहानी - शब्दों की दुनिया की श्रंखला से

जिम्मेदारी शब्दों की भी एक अजीब दुनिया है। ना जाने कितने ही प्रकार के भिन्न-२ स्वरुप लिए हुए शब्द रोजाना हमारी जिंदगी के साथ उठकपठक खेलते है। कुछ पहचाने हुए होते है तो कुछ अक्सर अपरिचित शब्द भी हमसे टकराने में नहीं डरते और जाने अनजाने में हम उन्हें अपना बना लेते है। हाँ ये भी है कि बहुत से शब्दों से लगभग रोजाना मुलाकात होने के बावजूद हम वो घनिष्ठता स्थापित नहीं कर पाते। लेकिन ये शब्द हमारा इस तरह पीछा करते है कि उनका नाम सुनते ही रूह काँपने लगती है। और एक ऐसा ही शब्द है जिम्मेदारी। ये बचपन से लेकर आज तक साए की तरह पीछे पड़ा हुआ है। जब दिनभर टॉफी की चाहत में माँ के चारों तरफ चक्कर लगाता तो माँ के झल्ला उठने पर दादी बस यही कहती - बच्चा है। मांग लिए तो क्या हुआ ? एक साल बाद स्कूल की जिम्मेदारी से अक्ल आ जाएगी और अपने आप ये बच्चपना हरकते बंद हो जाएगी। अब जनाब जब स्कूल जाने लगा तो गंदे कपड़ो के साथ-२ मास्टरों और साथी बच्चों के शिकायतों के थेले भी भर - भर कर घर आने लगे। इस पर सभी घर वालों को देर अंधेर चिल्लाने का मौका मिल जाता। बस साथ होती थी तो वो थी दादी। जो सबको शांत कर देती ये कहकर कि