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कुछ ऐसे ही !!

कुछ ऐसे ही !!  एक  बार वक़्त बह रहा था धीरे-धीरे, धीरे-धीरे हम भी बह रहे थे वक़्त के साथ अटक अटक के, अटक अटक के वक़्त इतना धीरे बह रहा था कि वक़्त को वक़्त मिला हमसे ये पूछने के लिए - भैया कहाँ जा रहे हो ? हम अचकचाए, थोड़ा घबराए और बोले - कैसी सी बात करते हो भाई हम तो तुम्हारे साथ बहते आये है तुमने कहा - चलना सीखो हम चलना सीख गए तुमने कहा - बोलना सीखो तुतलाती ज़बान में ही सही  हम बोलना सीख गए फिर तुमने कहा - संस्कार सीखों तो हम संस्कारी बन गए इसके पैर छुए, उसके पैर छुए और घूमने लगे दिल में इज़्ज़त लिए हुए फिर तुमने  कहा - दुनियादारी सीखों तो भैया हम निकल पड़े रास्ते पर सबको नमस्कार करते हुए स्कूल गए, खेत गए, मैदान गए, बाजार गए, नानी के गए, बुआ के गए, जगह जगह गए, सब जगह गए बूढों को चिढ़ाया, बच्चों को गुस्साया, लड़कियों पर भी खूब कसौटियां तानी उन्हें क्या खूब छेड़ा अबे! मियां क्या बकते हो। हमने तुम्हे लड़कियां छेड़ने के लिए कहा था ? और नहीं तो क्या! वो जीन्स पहन कर निकलती थी हम संस्कारी थे वो शाम के समय निकलती थी हम जवान थे वो स्कूल के लिए, बाजार के लिए, खेलने क

मुस्कान

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मुस्कान उसने हमे देखाi मुस्कराई, थोड़ा शरमाई और चली गयी ! आयी उनकी मुस्कराहट दौड़कर सजी हमारे गालों पर और जा मिली दिल से अब जब भी वो आती अपनी मुस्कराहट साथ लाती जो हमारे गालों पर सजती और दिल से जा मिलती इतना सा था हमारा और उनका रिश्ता दो जाने पहचाने चेहरे    दो अनजान लोग दो अनजान दिल और एक मुस्कान !!