बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

बिन ब्याहा बाप बना दिया

कल शाम यूं ही इंटरनेट पर ताकझाक करते हुए एक हास्यकविता देखी. बड़ी मजेदार और जानदार मालूम होती थी. सोचा हास्य कविता को आपके साथ सांझा करूं लेकिन इसके मूल लेखक का नाम नहीं जानता इसलिए जनाब जिसकी भी हो मेरी तरफ से आभार प्रसन्नता से स्वीकार कर ले.

हिन्दी हास्य कविताएं: बाप बना दिया


कई दिनों बाद किसी का फोन आया।
मै बना रहा था सब्जी, उसे छोड़कर उठाया।

उधर से एक पतली सी आवाज आयी हैलो नरेश!
मैंने कहा सॉरी हियर इज मुकेश!

उसने कहा! क्यों बेवकूफ बना रहे हो।
मुझे सब पता है तुम नरेश ही बोल रहे हो।।

मै थोडा गुस्से में बोला! तुम हो कैसी बला।।
मै कैसे तुम्हे समझाऊँ। मुकेश हूँ नरेश को कहाँ से लाऊं।।

उसको मेरी बातों से, हुआ कुछ खटका।
उसने बड़े जोर से, रिसीवर को पटका।।

तब मुझको किचन से, कुछ बदबू सी आयी।

राँग नम्बर के चक्कर में, मैंने सब्जी जलवायी।।

दूसरे दिन फिर, उसका फोन आया।
मै बाथरूम से भागा, दीवार से टकराया।

सिर के बल गिरा, नाक से खून आया।।
फिर भी गिरते पड़ते, फोन उठाया।।

फिर वही आवाज, आयी हैलो नरेश।
मै खीझकर चिल्लाया! नहीं उसका बाप मुकेश।।

उसने कहा अंकल नमस्ते! मैंने भी आशीष दिया-
खुश रह आज तो मै, बच गया मरते मरते।।

वो थोड़ा शरमाई, फिर गिड़गिड़ायी-

अंकल नरेश से बात करा दो, मै पूनम बोल रही हूँ।
मैंने जवाब दिया-
नरेश तो सुबह ही मर गया, अभी दफना कर आ रहा हूँ।।

उसको हुआ कुछ शक। उसने कहा बक॥

अभी कल ही तो दिखा था।
मैंने आह भरी! इतनी जल्दी मरेगा,

क्या मुझको ये पता था।।

आवाज आयी अच्छा अतुल का नम्बर बता दो।
मै रोया! मेरा बेटा मरा है, कम से कम झूठी तसल्ली तो दे दो।।

उसको मेरी बातों में दिखी सच्चाई।
तब उसने अपनी गाथा सुनाई।।
अंकल मुझे आपका दर्द पता है।
पर इसमें मेरी क्या खता है।।

वो था ही इतना कमीना।

बेकार था उसका जीना।।

आपको क्या पता उसने मेरे साथ क्या किया था।
इंडिया गेट पर ही मेरा चुम्मा ले लिया था।।
इसके अलावा भी उसने मुझको ठगा था।
लालकिले पे मेरा पर्स ले भगा था।।
उसकी इस हरकत पर मेरे डैडी ने डांटा।
तो उसने मेरे बाप को भी जड़ दिया चांटा।।

और क्या बताऊँ मै उसकी करतूत।
अच्छा हुआ मर गया आपका कपूत।।

लेकिन मै उसे अब भी नहीं छोडूंगी।
स्वर्ग तो जायेगा नहीं नरक तक खदेड़ूगी।।

मैंने  उसको समझाया।

दो चार अवधी बातों का जाम पिलाया।।

और कहा! छोडो भी ये गुस्सा।
खत्म हुआ नरेश का किस्सा।।
मै उससे हूँ शर्मिंदा।

शायद तुम्हारे लिए हूँ जिन्दा।।
मुझसे शादी करोगी? सच कह रहा हूँ
पैर भी दबाऊंगा अगर तुम कहोगी।।

वो गुर्रायी! चुप बुड्ढे, कुछ तो शरम कर।
भगवान से नहीं, मुझसे तो डर।।

तुझे क्या पता मै कितनी खूंखार हूँ।

कलयुग में पूतना का दूसरा अवतार हूँ।।

मै तो अभी तेरे बेटे को ही नहीं छोडूंगी।
तूने कैसे सोचा मै तुझसे रिश्ता जोडूंगी।।

अरे तू! इस धरती पर अभिशाप है।
नरेश तो ठग ही था, तू तो उसका भी बाप है।।
उस  दिन  ही  मैंने,  वो फोन कटा दिया।
पर उसने बिन ब्याहा, बाप मुझे बना दिया॥

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

मौन

मौन
श्रदांजलि है
आदर है
समर्पण है
इसलिए मौन हो जाते है हम .

मौन
क्रोध है
अस्थिर है
शोषण है
भयावह है मौन
इसलिए मौन हो जाते है हम

मौन
मृत्यु है, शिथिलता है .
एक अविरोध समर्थन है
इसलिए मौन नहीं होना चाहता मेरा मन .

  • शक्ति द्विवेदी

शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

ख्वाबोँ का सफ़र - एक आत्मकथा

बलजीत यादव के ख्वाबोँ की दुनिया का सफ़र तब शुरू हुआ जब वो अपनी भैसों को खेतों में चराने ले जाया करता। डंडी लिए हुए भैसों को इधर उधर हांकता बलजीत बोरियत से बचने के लिए धीरे - धीरे ख्वाबों की एक दुनिया बुनने लगा। और घर पर बड़े भाई की चिल्लाहट ने उन ख्वाबों को पर लगा दिए। जब भी वो भाई की डांट सुनता तो, अपने ख़्वाबों के संसार में जा उड़ता जो उसे कभी जंगलों की सैर कराते तो कभी रेगिस्तान की। सोचता था जंगल में भाग जाएगा और वो वही पेड़ों पर सोएगा। बाहरी चमचमाती दुनिया से कटा हुआ बलजीत सोचता कि वो जंगल में फलों के सहारे जी लेगा और पेड़, पशु और पंछियों से दोस्ती कर लेगा।
कक्षा में सबसे पीछे बैठने वाला बलजीत नजर कम होने की वजह से धीरे - धीरे आगे आने लगा और फिर सब बच्चों से आगे बोर्ड के बिलकुल पास बैठने लगा। उसके बावजूद बोर्ड पर अक्षर दिखाई न पड़ने के कारण वो साथी बच्चों की कॉपियां मांगकर घर लाने लगा। एक दिन बलजीत के पापा ने देखा कि वो दूसरे बच्चों की कॉपियां घर लाता है तो इसका कारण पूछ बैठे। और दूसरे ही दिन जनाब को गावं में सबसे कम उम्र में चश्मे लगाने का गौरव प्राप्त हो गया। जिससे गावं वालों को बलजीत के रूप में एक नया हास्य पात्र मिल गया। उसे दिनभर लोगों को जवाब देना पड़ता कि उसको इतनी कम उम्र में चश्मे क्यों लग गए ? उनको कोसते हुए बेचारा सोचता कि इन कम्बख्तों को क्या जवाब दिया जाए और मन मारकर चुप हो जाता।
चश्मों का नंबर दिन - ब - दिन बढ़ते गया। जिससे खेल का मैदान भी बलजीत के लिए मुश्किलें बढ़ाने लगा। लेकिन अब बलजीत के ख्वाबी पुलाव अच्छी तरह पकने लगे थे। वो रोज नयी-नयी कहानियां बनाता और अपनी माँ को सुनाता। दोनों माँ बेटे खूब देर तक खिलखिलाकर हँसते। दसवीं में अच्छे नंबर से पास होने पर समाज ने होशियार घोषित कर दिया। अब एक होशियार लड़का कला और वाणिज्य जैसे विषय कैसे ले सकता था ?
बारहवीं के बाद कॉलेज में एडमिशन के सिलसिले ने बलजीत के लिए एक और दुविधा खड़ी कर दी। इंजीनियरिंग में एडमिशन लेने से मना करने पर चारों तरफ से तरह तरह के ताने पड़ने लगे। पर आख़िरकार काम आया वो गुस्सैल बड़ा भाई और उसकी मदद से दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में रसायन विज्ञान पढ़ने चला गया और दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला गावं का पहला बंदा बना। कॉलेज की दुनिया बिलकुल अलग थी लेकिन गावं की दुनिया से कहीं ज्यादा मजेदार। यहाँ उस पर ताने मारने वाला कोई नहीं था। भाईसाहब को ज्यों हि आज़ादी की खुली हवा मिली, राजनीतिक से लेकर सामाजिक, हर तरह की गतिविधयों में हाथ आजमाने कूद पड़े। वो खुद चाहे क्लास में न जाता परन्तु शाम में कॉलेज के "न.स.स पढ़ाकू" में आसपास के मोहल्लों से आये बच्चों को जरूर पढ़ाता।
जनाब को दुनियादारी को, और अच्छी तरह जानने का फितूर चढ़ा और पहुंचे बिहार, वो भी कोसी नदी के किनारे, एक सुदूर गावं में। कहते है वहां उसके जीवन को एक नई दिशा मिली और पहुँच गए मुम्बई नगरी के टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान में श्रम अध्ययन के लिए। सामाजिक विज्ञान के नए माहौल ने बचपन के अनुभव और कॉलेज के ज्ञान को विस्तृत रूप देकर बलजीत को हक़ के लिए संघर्ष करने वालों के साथ खड़ा कर दिया। एक्टिविज्म के सफर में ख्वाब बुनने की शक्ति, नारे लिखने और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठाने में काम तो आई ही साथ में बलजीत को लेखन प्रतिभा से भी सामना करा गई।
बस फिर क्या था साहब निकल पड़े अपनी प्रतिभा को निखारने और हाथ में जो भी आया पढ़ने लगा और कुछ कहानियां भी लिख डाली। जब साथियों ने दोस्ती के दबाव में आकर तारीफ कर दी तो सीधा अपनी ख्वाबों की दुनिया के सातवें आसमान पर बैठ गया। पढ़ने का और लेखन का खुमार इतना चढ़ा कि नौकरी से इस्तीफा देकर आज एक लाइब्रेरी में बैठे पढता रहता है। सुना है, कभी लेखक बनने का ख्वाब देखता है तो कभी स्क्रिप्ट राइटर बनने का। एक दिन तो ख्वाब देख रहा था कि गुलज़ार साहब उसे अवार्ड दे रहे है। गुलज़ार साहब के सामने क्या डायलाग मारा -" सर आपके चरण स्पर्श हो गए बस यही तमन्ना थी। ऐसा लगता है कि दुनिया की सारी खुशियां सिमटकर मेरे क़दमों में आ गिरी है।"
खबर मिली है कि AIB लेखकों के लिए कोई ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाने वाला है। शायद तभी हमारा ख्वाबों का राजा आजकल इतना खुश है। कल ही अपने रूममेट को बोल रहा था कि कमाएगा तो सिर्फ लेखन से। (मनोज बाजपेयी का इंटरव्यू देखा होगा ना इसलिए ) वो देखों गाना भी गुनगुना रहा है तो रामु तो दीवाना फिल्म का (1980)।
" ख्वाबों की दुनिया
सितारों की दुनिया
दूर भी है पर दूर नहीं
उझड़े फ़िज़ा के
चमन से कह दो
रंगीन बहार अब दूर नहीं
ख्वाबों की दुनिया ".....

अरे भई AIB वालों ले जाओ इसे । खुद पागल हो या न हो पर हमें जरूर कर देगा।

मंगलवार, 26 जनवरी 2016

फरहान का प्यार

 फरहान का प्यार


चाय की टपरी। चार पांच कुर्सिया। एक  मेज़। दो लड़के २४ -२५ साल के चाय लिए हुए आते है।
सलीम : ( आह की आवाज़ के साथ कुर्सी पर आराम करने की स्टाइल में बैठते हुए) हाँ भाई अब बता अपनी स्टोरी। लड़की का क्या नाम बता रहा था तू ?

फरहान : मीता।

सलीम : मीता। वो Social Enterpreneurship वाली ? (थोड़ी ऊँची आवाज़ में ) वाह भाई की choice तो गजब है। 

फरहान : (हसते हुए ) हाँ लड़की ठीक है।

सलीम : तो कब से चल रहा है अपने हीरो का प्यार का चक्कर ?

फरहान : बस दो महीनों से।

सलीम : (चौंकते हुए ) दो महीनो से और हमें हवा भी नहीं लगने दी। 

फरहान : अरे नहीं ! सोचा जब बात पूरी बन जाए तब ही बताऊ। ये बात सबसे पहले तुझे ही बता रहा हूँ अभी किसी को नहीं पता ये बात। 

सलीम: रहने दे साले। प्यार के आते ही हम तो पराये हो गए। आजकल तो हम तेरे दर्शन को भी तरसते है। 

फरहान : अरे नहीं। (हलकी मुस्कराहट के साथ ) कोई प्यार वियार नहीं है।

सलीम : (बात काटते हुए ) आए हाय। चेहरा तो देखो देखो जनाब का। अरे भैया ख़ुशी की लाली टपक रही है आपके चेहरे से। 

फरहान : (हंसी को रोकने के अंदाज़ में नीचे देखते हुए ) कुछ भी। लगता है सुबह से तुझे कोई बकरा नहीं मिला हलाल करने के लिए। जो मेरी ही लेने पे तुला हुआ है। 

सलीम : (हँसते हुए ) चल छोड़ ये बता तेरी उससे दोस्ती कैसे हुई ?

फरहान : अरे वो गौरव के बर्थडे पर उसके घर पार्टी थी।  पहली बार वही मिली थी। उस दिन थोड़ी बातें हुई। कुछ ज्यादा ही इंटरेस्ट दिखाया उसने मुझमे। पर मैंने ज्यादा भाव नहीं दिए।

सलीम : वाह मेरे शेर !

फरहान : अरे सही में उस वक़्त मैं जानवी के साथ था ना। 

सलीम : तो भाईसाहब ये जानवी से मीता पर आपका ह्रदय परिवर्तन कैसे हुआ ?

फरहान : गौरव की पार्टी के बाद हम लोग कैंपस में दो चार बार मिले। चाय वाय पी साथ में। 

सलीम: और हमारे राजकुमार को प्यार हो गया। 

फरहान : हाहाहा। हाँ कुछ ऐसा ही। 

सलीम : यार तू तो बॉलीवुड के हीरो से भी फ़ास्ट निकला प्यार करने के मामले में। मतलब किसी लड़की ने बात करनी चालू की नहीं कि भाईसाहब को डायरेक्ट प्यार।

फरहान : नहीं नहीं।  वो ही स्टार्टिंग से कुछ ज्यादा ही इंटेरेस्ट दिखा रही थी। 

सलीम : पर उसका तो कॉलेज में कोई बॉयफ्रेंड था ना ?

फरहान : हाँ।

salim : अबे ! फिर तू अपनी वहां कटवाने क्यों चला गया ?

फरहान : उसके साथ अच्छा नहीं चल रहा। वो distance रिलेशनशिप है ना। 

सलीम: भाई सुन। एक फ्री की एडवाइस देता हूँ।  ये बॉयफ्रेंड वाली लड़कियों से ना थोड़ा बच कर ही रहना। पता नहीं कब इनका पुराना प्यार जाग जाए और तेरे जैसे बेचारे का फालतू में चुतिया कट जाए। 

फरहान : यार ऐसी कोई बात नहीं है। तू मुझे जानता ही है। आजतक पड़ा हूँ कभी ऐसे मामले में ? पर यार इस लड़की की बात ही कुछ और है। जब वो बातें करते करते अपनी मोटी मोटी आँखें  nikalkar dekhti है ना तो कसम से  ..... पूछ  मत। 

सलीम मुंह पर ऊँगली रखे हुए है और गर्दन हिलाता है। 

फरहान : अब ये बता तेरा भाई क्या करे ?

सलीम : ( बंद मुंह से ) हु की आवाज़ निकालता है। 

फरहान : ( गुस्से से ) मैं उठकर जाऊं ? अबे साले तुझे किसलिए लाया हूँ मैं यहाँ ? एक तो फ्री की चाय पी गया। 

सलीम : यार मैं सुन तो रहा हूँ। 

फरहान : ज्यादा नौटंकी की तो मैं चला जाऊंगा।

सलीम : अच्छा बाबा ठीक है। एक काम कर तू जाकर उसको बोल दे कि तू उसका आशिक़ बन गया है।

फरहान - पर अगर उसने मना कर दिया तो ?

सलीम : (एकदम सीरियस अंदाज़ में ) तो मत बोल।

फरहान : थोड़ा सोचकर।  बोल ही देता हूँ। देखा जाएगा जो भी होगा।

सलीम : अरे बोल दे।  बोल दे। हाँ कर ही देगी। यार तेरे जैसे स्मार्ट बन्दे को हाँ नहीं करेगी तो किसको करेगी ? वैसे भी बड़े अच्छे लगते हो साथ में।

फरहान :   ले ले। साले अच्छे से ले ले। 

सलीम : अरे नहीं यार सच बोल रहा हूँ। चल तुझे प्यार हुआ है इस ख़ुशी में मेरी तरफ से हॉटस्पॉट में पार्टी।  

फरहान : हाँ चल। वैसे भी हाँ करे या ना करे अपनी ओल्ड मोंक तो है ही अपने साथ।

सोमवार, 16 नवंबर 2015

मोहन का intellectuals की दुनिया में प्रवेश

मोहन का intellectuals की दुनिया में प्रवेश

मोहन लाल को कॉलेज में दाखिल हुए आज पूरा एक महिना हो चूका है। वो घर से पहली बार इतनी दूर अनजान लोगों के बीच में रह रहा है। अभी तक की जिन्दगी में वह अपने गावं के अलावा केवल अपनी नानी के गावं और अपनी बुआ जी के कसबे तक ही सीमित था। परन्तु पिछले एक महीने में अनजान लोगों के बीच में रहकर मोहन को एक और दुनिया का अनुभव हुआ जो भावनाओं के अलावा भी बहुत सारी चीजों से सम्बन्ध रखती है। मोहन की शर्मीली प्रवर्ती के कारण ज्यादा लोगों से गुफ्तगू नहीं हो पाई है। वो अभी अपनी कक्षा के चार पांच सहपाठियों से तथा हॉस्टल के कुछ साथियों से ही घुल मिल पाया है।
मोहन के लिए कॉलेज का वातावरण गावं के वातावरण से बिल्कुल विपरीत है। जहाँ उसके गावं में लोग सुबह- सुबह उठकर खेतों में टेहली मारने जाते है तथा मुहं में नीम की दातुल चबाये हुए अक्सर लोकल राजनीती में हो रही उठक-पठक की चर्चा में व्यस्त नजर आतें है। तो वही कॉलेज के बच्चों की शुरुआत सुबह सुबह ब्रश करते हुए अखबार पढने से होती है। हॉस्टल में बच्चें सुबह वार्तालाप की बजाय बाथरूम के लिए दौड-धुप मचाये फिरते है। हाँ ये भी है कि हॉस्टल में कुछ बच्चों की सुबह होती ही नहीं।
गावं में लोग सुबह सुबह चाय की चुस्की लेते हुए मौसम से लेकर आसपास के गावं की आधी झूठी उडती ख़बरों पर नमक मिर्च लगाना पसंद करते है। तो ऐसा ही कुछ हाल मोहन के हॉस्टल में अक्सर रात के समय होता है। रात के भोजन के बाद कुछ बच्चे मोहन के कमरे के सामने चौकड़ी जमा कर बैठ जातें है जिसमें रोजाना नए नए विषय पर अजीब किस्म की बहस (ज्यादातर मोहन की समझ से बाहर) सुनाई पड़ती है। इससे मोहन को पढाई करने तथा सोने में तकलीफ होती है तथा मन ही मन इन सब लोगों को तथा हॉस्टल की जिन्दगी को कोसता रहता है।
आज भी सभी लोगों ने मोहन के कमरे के बहार चौकड़ी जमानी शुरू कर दी है। मोहन का एक साथी जबरदस्ती मोहन को चौकड़ी में घसीट लेता है। तथा कल रात के विषय पर मोहन की राय जानने की जिद्द करने लगता है। उन्हें लगता है की मोहन गावं से आता है जिससे उसको वहां की जानकारी थोड़ी ज्यादा हो सकती है हालाँकि यहाँ कोई भी अपने आप में कम ज्ञानी नहीं है।  रोहिताश उससे पूछता है कि तुम्हे क्या लगता है कि गाववाले लोग छुआछुत, जात-पात में इतना विश्वास क्यों रखते है ? मोहन कुछ सोचे उससे पहले ही आशुतोष बोल पड़ा - अरे भाई क्योंकि वहाँ के लोग पढ़े लिखे नहीं है। और उसके बाद तीन चार हाँ हाँ की आवाज़ सुनाई पड़ती है।
मोहन कुछ गहरी सोच में पड़ जाता है तो वही बाकी लोग चर्चा में तरह तरह के तर्क पेश करते है। नवीन ने कहा - गावं में बड़ी जाती वाले लोग ज्यादा बलपूर्वक है। इससे उन्हें दलितों पर अपनी ताकत आजमाइश करने का मौका मिलता है और वो जाती प्रथा को जारी रखना चाहते है। सूरज के अनुसार गावं वालों को इस विषय पर सही जानकारी नहीं दी जाती और वो आज भी पुराने ख्यालों में ही जी रहे है। अजी एक महानुभाव के  अनुसार तो दलित तथा पिछड़ी जाती के लोग ही छुआछुत जैसी महामारी के लिए जिम्मेदार है। उसके अनुसार दान और भीख जैसे छोटे मोट प्रलोभन के कारण ये लोग जाति का बिल्ला अपने साथ लेकर घूमते रहते है। सभी लोग भारतीय गावों को छुआछुत की तराजू में तोल ही रहे थे कि प्रेम कमरे के अन्दर से चिल्लाता है। अरे जल्दी आओ - देखो क्या मस्त पटाका खडी है। और सभी लड़के एक दुसरे के ऊपर लथपथ हुए खिड़की से लड़की को देखने की कोशिश करते है। एक कहता है - अरे ये तो सिगरेट पी रही है वो भी दो लडको के साथ खड़े होकर।

रवि- अरे यार ये तो दो-दो के साथ मजे लुट रही है  सही माल है यार। एक बार मिल जाए तो जन्नत की सैर करा दूंगा।
मनीष- भाइयों कल अगर इसको सिगरेट पिलाने की बहाने देखना तुम्हारी भाभी ना बनाई तो मेरा नाम बदल देना।
मोहन लड़की देखकर चौंक जाता है ये तो उसकी क्लासमेट शैली है। ये वही एकमात्र लड़की है जिसने अभी तक मोहन से बात की है। मोहन ने बाकी लड़कों की तरह तो शैली को भद्दे शब्दों से नहीं तरासा। पर हाँ शैली को सिगरेट पीता देखकर उसे थोडा दुख जरुर हुआ। (मोहन ने लड़की को कभी सिगरेट पीते नहीं देखा था शायद इसीलिए)
पर जो भी हो दुसरे दिन मोहन जब क्लास जाता है तो शैली को देखकर थोडा असहज हो जाता है। शायद कल की घटना ने और हॉस्टल के लड़कों के बयानों ने शायद कुसंगति की संकाओ के कीड़े पैदा कर दिए है। शैली भी जल्दी जल्दी में मोहन से बात नहीं कर पाती। पर क्लास ख़त्म होते ही शैली दौड़ते हुए मोहन के पास आती है।
हाय मोहन ! क्या हुआ तुम्हे? आज थोड़े परेशान लग रहे हो ?
हाय! नहीं नहीं।  ऐसा कुछ नहीं है।
तो फिर आज सुबह हाय तक नहीं किया ?
अरे वो तो जल्दी जल्दी में ध्यान ही नहीं रहा।
अच्छा जी हमारे साथ शेयर नहीं करना। चलो कोई नहीं। जब तुम्हारा मन करे तो हमारे साथ शेयर कर लेना।
हाँ बिलकुल यार। तेरे साथ शेयर नहीं करूँगा तो किसके साथ करूँगा। आखिर तुम ही तो है जो मुझसे अच्छे से बात करती हो।
 अरे पगले ऐसा नहीं है। तू ही किसी से बात नहीं करता। क्लास ख़त्म होते ही तुझे तो बस हॉस्टल भागने की जल्दी रहती  है। क्या रखा है हॉस्टल में ऐसा ?
हाहा.. समझ नही आता क्लास के बाद क्या करू इसीलिए हॉस्टल चला जाता हूँ। तुम बताओ क्या चल रहा है आजकल?
बस एकदम बढ़िया। .... चल कैंटीन में कुछ खाने चलते है।
हाँ ठीक है चल। ये बता ये पकाऊ टीचर्स को तुम झेलती कैसे हो?
यार ये तो झेलना ही पड़ेगा। मैं तो ये लोग जो कुछ भी बोर्ड पर लिखते है बस वो ही लिखती रहती हूँ। इन नोट्स से एग्जाम में काफी हेल्प मिल जाती है। तू भी लिख लिया कर कुछ क्लास में। ये अपने पढाये हुए में से ही question पेपर बनाते है। 
हाँ ! वो तो है। पर यार लिखा ही नहीं जाता। इतना बोरिंग होता है। और इस मैडम की शोर्ट फॉर्म्स तो माशा अल्लाह है ...थोड़ी चुप्पी के बाद
अच्छा ये बता तू सिगरेट पीती है ?
हाँ पीती हूँ। तुझे कैसे पता? किसने बताया तुझे ?
अरे नहीं ! किसी ने बताया नहीं। वो कल शाम को जब तुम हॉस्टल के पीछे सिगरेट पी रही थी तब देखा था।
अच्छा ! तो तुम्हारा रूम उधर है।
हाँ, जहाँ तुम खडी थी ठीक उसके सामने।
लेकिन तुम इतनी हरानी से क्यों पूछ रहे हो ?

रवि मोहन के बगल से गुजरता है . मोहन क्लास ख़त्म हो गयी? भाई कभी हमारे साथ भी टहल लिया करो। ये कहता हुआ रवि वहां से निकल लेता है।

ये तुम्हारा दोस्त था ?
नहीं , हॉस्टल में रहता है। बस थोड़ी जान पहचान है।
कैसे कैसे लोग है ये। तू तो नहीं करता ना ये किसी के साथ?
नहीं नहीं। बिल्कुल नहीं। मैं तो ऐसे लड़कों से ज्यादा बात भी नहीं करता .
हम्म्म्म। ठीक है। अच्छा तूने बताया नहीं तू सिगरेट के बारे में इतनी हरानी से क्यों पूछ रहा था।
नहीं वो तो ऐसे ही पूछ रहा था। actual में शैली सिगरेट हेल्थ के लिए अच्छी नहीं होती।
ओह वाह ! लड़के सिगरेट पिए , लड़की छेड़े , शराब पीये सब करे . उनको कहने वाला कोई नहीं है। पर लड़कियों को जिसे देखों वो नसीहत देने चले आते है।
यार , तुम तो खामख्वाह गुस्सा हो रही हो।  मेरा तो बस ये कहना है कि सिगरेट दारु किसी के लिए भी अच्छा नहीं है। फिर चाहे लड़का हो या लड़की। 
क्यों अच्छी क्यों नहीं है ? मैं अपने पैसे की पीती हूँ किसी के बाप के पैसे से तो खरीदकर पी नहीं रही और ये मेरी अपना शरीर है। इसमें तुम कौन होते हो मुझे नसीहत देने वाले ?
ठीक है बाबा आगे से नहीं कहूँगा।
बात कहने या नहीं कहने की नहीं है। बात ऐसी सोच रखने की है।
क्या तुमने कभी किसी लड़के दोस्त को सिगरेट पीने से रोका ?
हाँ बिल्कुल रोका और इतना ही नहीं मैंने अपने पुरे वार्ड में सिगरेट पीने वालो को आने से मना कर रखा है।  देखो तुम ये gender issue को गलत तरीके से उठा रही हो।  इसको अच्छे मुद्दे के लिए उपयोग करना चाहिए ना की सिगरेट जैसे घटिया आदतों को छुपाने के लिए। सोचो अगर कोई रूडिवादी बाप अगर तुम्हे सिगरेट पीता देख लेता है तो घर जाकर क्या कहेगा - कॉलेज में तो लड़कियां सिगरेट पीती है। मैं नहीं चाहता मेरी बेटी भी उनके जैसी बने। बस उसको मिल गया बहाना अपनी बेटी को ना पढ़ाने का।
मोहन, चीज़ें इतनी आसान नहीं है। वो बाप तो कोई ना कोई बहाना निकाल ही लेगा जिसे अपनी बेटी को पढ़ाना नहीं है। सिगरेट नहीं तो कपडे और बॉयफ्रेंड जैसे मुद्दे के  सहारे रोक लेगा अपनी बेटी को। ये सोच ही तो ब्राह्मणवादी सोच है। ये बता लड़के तो खूब सिगरेट पीतें है फिर भी उन्हें क्यों नहीं रोका जाता कॉलेज जाने के लिए? केवल लड़कियों को ही क्यों रोका जाता है ?
देखो , समाज में प्रभुता किसकी है ? मर्दों की। अब जब उनकी प्रभुता है तो वो अपनी ठोंस तो निकालेंगे ही ना। इस सोच के खिलाफ हमें लड़ना है और ये सिगरेट जैसे मुद्दे हमें असली मुद्दों से भटका देते है। 
अरे बाप रे ! तुम्हे तो फिलोसोफेर होना चाहिए था। यहाँ इंजीनियरिंग में क्या कर रहे हो ? पर बेटा कुछ भी हो मैं तेरी बातों में नहीं आने वाली। पहले लडको की सिगरेट बंद करा फिर मैं अपनी सिगरेट बंद करुँगी। 
भैया ना तो मैं तुम्हारी सिगरेट बंद करा सकता और नाही लडको की।  मैं तो बस तुझे दोस्त के नाते सलाह दे रहा था .
रख अपनी सलाह को अपने पास और ये बता क्या लेगा ?
मेरी लिए एक ब्रेड ओम्लेट ले ले।
कुर्सी पर बैठते हुए - अच्छा सिगरेट के लिए तुम लोग इतना लड़ने के लिए उतारू रहते हो। ये बताओ कॉलेज में सिर्फ बॉयज हॉस्टल है। फिर तुमने हॉस्टल के लिए कभी आन्दोलन क्यों नहीं किया ?
ओ भैया आन्दोलनकारी। खाना खाने देगा। मुझे कुछ नहीं लेना देना इन आंदोलनों से। मुझे तो बस इंजीनियरिंग ख़त्म करनी है बस।
ये ही तो दिक्कत है इस देश के साथ। सब अपने अपने बारे में सोचते है।
मेरे बाप सुबह से प्रैक्टिकल करते करते जान चली गयी है। माफ़ कर दे मुझे। तेरे हॉस्टल के पीछे कभी सिगरेट नहीं पीउंगी। अब तो खुश ?
हाहाहा ..अरे सॉरी ..तू खा ले. चल मैं हॉस्टल चलता हूँ। 

बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

सुनीति से कुल्टा तक का सफर


मेरे खुद के चाचा के लड़के ने मुझसे कॉलेज के बाद मिलने के लिए कहा। जब मैंने पुछा क्या बात है तो उसने कहा कि मिलकर बाद में बताऊंगा। जब मैं कॉलेज के बाद उससे मिलने गयी तो वो मुझे सिनेमा दिखाने की बातें करने लगा। कहने लगा सनी देओल की नयी फिल्म आई है। मुझे भी कहाँ होश था , सोचा अगर इतना कह रहा है तो एक फिल्म जाने में क्या हर्ज है आखिर अपने चाचा का ही तो लड़का है। फिल्म जाने लगे तो कॉलेज से निकलते वक़्त उसके कुछ दोस्तों ने तरह-तरह की आवाज़ें निकली। शायद वो आवाजें मुझे सावधान करने के लिए थी। मगर मैं भी वक़्त की मारी कुछ नहीं समझी और फिल्म के लिए चली गई। हमने अच्छे से पूरी फिल्म देखी और घर वापस आ गए।
अगले कुछ दिन तक सब कुछ नार्मल रहा। हाँ उसके हमारे घर के चक्कर कुछ ज्यादा ही बढ़ गए थे। वो मेरी माँ के कामों में चाहत से ज्यादा ही मदद करने लगा था। लेकिन मुझे इसके पीछे उसके मंसूबे मालूम नहीं थे। एक दिन जब मैं खेत में गयी  तो पता नहीं वो कहाँ से वहां पर आ टपका। उसने मुझसे कहा कि मुझे बहुत प्यार करता है और वो मेरे बिना नहीं रह सकता। मैंने उसे समझाया कि पागल मत बन , हम भाई बहन है। इसके अलावा हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है। मगर उसपर तो पता नहीं कोण सा भूत सवार था। उसने कहा - जब ये सब नाटक करना था तो मेरे साथ फिल्म देखने क्यों आई ? और ये सब कहकर वो मेरे पास आने लगा। बहुत समझाने पर भी जब वो नहीं माना तो मैंने उसे एक  थप्पड़ जड़ दिया। वो बिना बोले चुपचाप वहां से निकल गया। मुझे बहुत डर लग रहा था पर लगा कि अब बला टल गयी है  और मैं घर वापस आ गयी।
मैंने घर आकर सब कुछ अपनी माँ को बतला दिया। माँ ने कहा कि मैंने कोई गलती नहीं की है और माँ ने सीधे उसके घर जाकर उसकी माँ को सारी बातें बताई। उस वक़्त मेरी माँ के सामने तो उसने कहा कि वो अपने बेटे को समझा देगी और अपने बेटे को गालियाँ देने लगी। माँ घर वापस आ गयी।
पर दुसरे दिन ये बात पुरे गावं में फ़ैल चुकी थी कि मैंने लड़के के साथ जबरदस्ती कुछ करने की कोशिश की थी। जिस रास्तें से भी हम जाते वहां खड़े लोग हमारा भद्दी भद्दी गालियों से स्वागत करते। सभी गावं वाले मेरे करैक्टर का सर्टिफिकेशन करने में लगे हुए थे। माँ बाप का घर से निकलना बंद हो चूका था। तब मुझे समझ में आया कि काश मैं कॉलेज की उन लडको की आवाज़ों का मतलब समझ लेती तो कम से कम ये दिन तो नहीं देखने पड़ते।
खैर कुछ दिन बाद हमारे हमदर्द हमारे घर आने लगे तरह तरह के रिश्ते लेकर। जो बाप अपनी बेटी को पढ़ाने के सपने देखता था वही बाप आज उसे कॉलेज भेजने पर पछता रहा था। मेरे पास कहने को कुछ नहीं था और अगर था भी तो कोई सुनने वाला नहीं था। भाई होता तो शायद समझ लेता मगर वो अभी केवल १० साल का था और मैं अकेली घर में कैद हो चुकी थी। मेरा काम बस चाय बनाकर लड़कों वालो को पिलाना था और सरमाते हुए मुहं लटकाकर उन्हें नमस्कार करना था।

 झाड़ू लगाते हुए सुनीति ये सब बडबडा रही थी। अपनी ढेढ़ साल की बेटी के सामने, जो चुपचाप टकटकी लगाये अपनी माँ को देख रही थी और बीच बीच में दोनों हाथों को उठाकर य.य की आवाज़ निकल देती थी। शायद वो अपनी सहमति जाता रही थी।
एक मिनट कुछ ख्वाबों में खोई हुई सुनीति वापस अपना इतिहास दोहराना चालू कर देती है। 

और फिर तेरे बाप का रिश्ता आया मेरे लिए , ये जो तेरी ताई है ना, ये ही लायी थी ये रिश्ता मेरे लिए। तेरा ताऊ कहने लगा कि उन्हें कोई दहेज नहीं चाहिए। उन्हें तो सिर्फ लड़की चाहिए और थोड़े से बारातियों के लिए हल्का-फुल्का खाने का इंतजाम। तेरा बाप कुछ कमाता नहीं था। मेरी माँ मेरी शादी किसी सरकारी अफसर से शादी कराना चाह रही थी। पर सरकारी नौकरी लगते ही यहाँ के लोग बड़ा बड़ा ख्वाब देखने लग जाते है जैसे पता नहीं पूरा आसमान ही लूट ले। मेरे बाप बेचारे के पास इतने पैसे कहा से आते ? और तेरी ताई ने तो हमारे घर ही चूल्हा डाल लिया था। वो दिन रात तेरे चाचा की बड़ाई करती रहती, कहने लगी सास भी नहीं है , बस वो ही है। घर में दो महिला ही रहेगी। बड़ा भाई नौकरी है , छोटे वाला खेती संभाल लेगा। और आख़िरकार मेरे थके हारे माँ बाप ने मेरी शादी तेरे बाप से करवा ही दी।

पल्लू से अपना मुहं पूछते हुए -

वैसे तेरा बाप बड़ा सीधा आदमी था। पर क्या करता , बेचारे की किस्मत में कुछ और ही लिखा था ? शुरुआत में तो वो मेरा बड़ा ख्याल रखता ? मुझे जैसे ही घर की याद सताती वो तुरंत कुछ ना कुछ करके मेरा मन बहला देता। पर मुझे कहा मालूम था कि मेरे नसीब में इतनी ही ख़ुशी लिखी है। शादी के कुछ महीनो बाद मुझे पता चला कि उसे टीबी है। उसे लगा की मुझे बुरा लगेगा इसलिए मुझे पहले नहीं बताया। टीबी उसे शादी से पहले ही था पर दवाई खाने से वो ठीक हो गया था। कहते है दो साल वो बिलकुल ठीक रहा और इसी बीच में हमारी शादी करा दी। जैसे ही मुझे पता चला कि उसे टीबी है मैं तुम्हारी तेरी ताई पर आग बबूला हो गयी कि उन्होंने मेरी शादी एक टीबी मरीज से क्यों कराई। वो कहने लगी - 'गावं के लोग ताना मारते थे , तेरे जेठ पर कि माँ बाप नहीं है इसलिए छोटे भाई का रिश्ता नहीं करा रहा। जमीन खाएगा भाई को रंडवा रखकर ये सब ताने भी दिए जाते और फिर हमें क्या मालूम था कि वो ठीक नहीं होगा। हमें लगा कि साल दो साल में ठीक हो ही जाएगा।'
 मेरी आँखों के सामने जैसा अँधेरा सा छा गया था। कुछ दिन तो मैंने खाना भी नहीं खाया। पर फिर क्या करती उन्हें छोड़ भी नहीं सकती थी। धीरे धीरे उनकी सेवा करने लगी पर पता नहीं उसने बिलकुल उम्मीद ही छोड़ दी थी। मैं आज तक उससे इस बात पर गुस्सा हूँ। आखिर क्या कमी रह गयी थी मेरी खातिरदारी में जो उसने इतनी जल्दी हार मान ली थी।  बैगर  जवाब दिए ही ऊपर चला गया। क्या करू नसीब है अपना अपना। अब पूरी जिन्दगी ऐसे ही गुजारनी पड़ेगी।

पानी पीयेगी ? ये ले मैं लाती हूँ। मटके से पानी लेने की आवाज़ के बाद चप्पलो की आवाज़ ...अ.. ले ..पी ले

पर इतने सब से तेरी माँ की मुसीबतें टलने वाली नहीं थी। तेरे बाप के मरने के एक महीने बाद ही हमारे घर के आस-पास से लोग निगाहें उठाकर चलने लगे कि कब मेरे दर्शन हो। अकेली औरत को तो ये मर्द लोग बाजारू समझ लेते है। कमबख्त वो कल का लौंडा भी वक़्त देखकर घर में घुसने लगा।
एक दिन मैं अकेली चारा काट रही थी, वो घर में आ गया लाइट पूछने के बहाने। जब उसने देखा कि मैं अकेली चारा काट रही हूँ तो कहने लगा कि लो भाभी मैं आपकी मदद करता हूँ, आप मुझे बुला लिया कीजिये घर की ही तो बात है। और फिर क्या था बस चालू हो गया उसका रोजाना मेरे घर आना जाना कभी किसी बहाने , कभी किसी बहाने। मैं भी वक़्त की मारी थी। सोचा कोई तो है जो इस अकेली औरत की मदद करता है। मगर भगवान् से हम औरतों का सुख कहाँ देखा जाता। पता नहीं उस हरामी के बीज ने क्या खबर फलाई गावं में या गावं वालों ने अपने आप ही कहानियां घड ली। पर मैं पुरे गावं का बलि का बकरा बन गयी थी। सभी लोग मुझमें खोट निकाल रहे थे। मर्द लोग मुझे देखकर अपनी धोती ऊपर उठाने लगते। जैसे सब लोग एक साथ अपनी हवस मुझ पर उतरने को आतुर है। तेरी ताई ने भी मुझसे लड़ाई कर ली। वो औरत जो मुझे अपनी छोटी बहन कहती थी पता नहीं क्या क्या कहने लगी।  उसने यहाँ तक कह दिया कि मैंने ही उसके देवर को यानी कि तेरे बाप को मारा है। जैसे मेरा तो वो कुछ लगता ही नहीं था। आज दुनिया ने मुझे ही उसका दुश्मन बना दिया। पड़ोसन ने छाछ देने से भी मन कर दिया। एक तरह से पुरे गावं ने मुझे कुलटा करार दे दिया।
गावं की औरते जिनके मर्द दिनभर पराई औरतों की फ़िराक में रहते है और वो खुद ना जाने कहाँ कहाँ जाती है बस मुझे ही कोसने लगी। अच्छा है चलो मेरे बहाने सबकी भड़ास तो निकल गयी। चलो किसी नौजवान लड़की के साथ तो ये नहीं हुआ। शायद इसी के साथ बाकी लड़कियों को नसीहत मिल गयी और  वो सब मेरी तरह कुलटा होने से बच गयी। 
तुझे मैं खूब पढ़ाऊंगी। पढ़कर खूब बड़ी अफसर बनाना , इस दलदल में तू मत रहियों। और मुझे भी अपने साथ ले जाना कही दूर शहर।
ले आजा तुझे दूध पिलाती हूँ। भूख लग गयी होगी।

सोमवार, 5 अक्टूबर 2015

पारो और चाय - अध्याय ५

पारो और चाय - अध्याय ५आज पारो और सलीम दोनों एक साथ अन्ना की टपरी पर पहुँचते है। जिससे दोनों सरप्राइज हो जाते है।

सलीम: अरे हीरोइन! आज एकदम वक़्त पर अ ? लगता है  हमारे साथ रह कर सुधर गयी है आप।

पारो: ओ ! गाय की औलाद। मैं हमेशा तुझसे पहले आती थी, तू एक बार पहले आ गया था तो ज्यादा उछल मत। समझा !

सलीम: आए हाए ! गुस्सा तो देखो मैडम जी का। अरे मजाक भी नहीं कर सकते।अपना ये गुस्सा ना अपने बॉयफ्रेंड के लिए बचा कर रखा कर। हम किसी की नहीं सुनते हां।

पारो: अच्छा ! दूँ क्या एक, कान के नीचे ? चल ये चाय पकड़ और चल।

सलीम: ओये यारा वायलेंट मत हो, देख कैसे हाथ कांप रहे है। (धीरे से ) यार यहाँ तो अपनी बात भी नहीं रख सकते।

पारो: हाँ ठीक है.. ठीक है.. ले चाय ले कर चल।

दोनों चाय रख कर बैठते है . पारो दोनो की सिगरेट जलाती है।

सलीम: और तेरा हीरो कैसा है ?

पारो: अच्छा है। आजकल ज्यादा बात नहीं हो रही।

सलीम: क्यों ?

पारो : यार काम ही इतना है। वो भी दिन भर ऑफिस में बिजी रहता है। और मेरा तो तू जानता ही है।

सलीम: अच्छा, अब समझा। मतलब आकाश तुझे दिन में फ़ोन या मैसेज नहीं कर पा रहा होगा। पर कोई नहीं तू बाकी लड़की जैसी थोड़े ही है। तुझ जैसी महान आत्मा के लिए ये छोटी मोटी चीज़ें थोड़े ही matter करती होंगी।

पारो : क्या बोला? (थप्पड़ मारते हुए )

सलीम : अरे नहीं कुछ नहीं। भला हम क्या बोल सकते है ? भैया वैसे भी आजकल लड़कियों की चलती है।

पारो: ज्यादा उछल मत बेटा। जब तेरी गर्लफ्रेंड बनेगी ना तब देखना। उसको तेरे बारे में मसाले डाल डालकर ऐसी कहानियां सुनाउंगी कि तेरी मार मार हालत पतली कर देगी।

सलीम: तुझे लगता है कि मैं तुझे अपनी गर्लफ्रेंड से मिलवाऊंगा। अपनी गर्लफ्रेंड से।अरे अपनी शकल तो देख।  हाहाहा.. ...सपने तो तू अच्छे देखती है।

पारो: तू ऐसा करेगा मेरे साथ। हाए मर जावा ..... अबे ऋतिक की औलाद पहले लड़की तो पटा। बेटा तुझसे कुछ होने जाने वाला तो है नहीं। लगता है हमें ही कुछ करना पड़ेगा।

सलीम: ओये हरिश्चंदर की भतीजी। कोई जरुरत नहीं है तुम्हारी मदद की। तुम्हारी दोस्त भी तुम्हारे जैसी होगी।

पारो: क्या मतलब मेरी जैसी होगी ? मेरे जैसी लड़की तेरे तरफ देखने भी ना वाली।

सलीम: हाँ तो मैं कौन सा उनके इंतज़ार में मरे जा रहा हूँ। अरे भतेरी लड़की है अपने पास। लाईन लगी पड़ी है अपने पास ऐसी लड़कियों की। तू देख्यों जब मेरी गर्लफ्रेंड आएगी। तेरे जैसी की तो यूँ छुट्टी कर देगी।

पारो: (चाय का कप डब्बे में डालते हुए) तो एक काम करना आगे  से उसके साथ ही चाय पीने आना। (ऑफिस की तरफ दूर जाते हुए) कल उसे बुला लाना।

सलीम: (उच्ची आवाज़ में) हाँ तो मैं कौन सा तेरे साथ चाय पीने के लिए मरा जा रहा हूँ .

मंगलवार, 29 सितंबर 2015

पारो और चाय -- अध्याय -४

तीन दिन के लम्बे वीकेंड के बाद आज ऑफिस में अफरा तफरी मची हुई है। ईद की मुबारकें और DJ के शोर ने इतना काम पैदा कर दिया की दिन भर हाथ में कागज लिए बॉस के चारो तरफ दौड़ना पड़ रहा है। फिर भी ये काम कम्भख्त कम होने का नाम नहीं ले रहा। आज तो भईया फेसबुक चेक करने का मौका भी नहीं मिला। व्हाट्सप्प को छुए तो लगता है जमाना हो गया। खैर छोड़िये सलीम तो इन सब बातों को भुलाकर घडी की तरफ देखते हुए अन्ना की टपरी पर दौड़ पड़ता है।  वही पारो बेचारी अपने कामो में फसी हुई है। उसे अपने बॉस को मेल करना है। फाइल बड़ी होने के कारण अपलोड होने में टाइम ले रही है। पहले से लेट कही और लेट ना हो जाए ये सोचकर पारो अपना मेल अपनी दोस्त को बताती हुई चाय के लिए निकल पड़ती है।

अन्ना की टपरी पर सलीम आज पहले से बैठे है और आज किसी कन्या के साथ गपशप में वयस्त है। पारो उसे देखती है और चहकती हुई अन्ना से सिगरेट और चाय लेती है। सलीम थोड़ी दुरी होने के कारन शायद पारो को अनदेखा करने की कोशिश करता है। पारो एक हाथ में चाय और दूसरे में सिगरेट पकडे हुए सलीम के पास खड़ी लड़की को जोर से हेलो बोलती है। और चाय रखकर बैठते हुए सलीम के हाथ से लाइटर छीनकर सिगरेट जलाती है।

लड़की : अच्छा सलीम मैं चलती हूँ। बाद में मिलते है अभी मुझे काम है।

सलीम : हाँ जरूर मिलते है। बाय !

पारो : ओए बाय के बच्चे ! कौन थी ये ?

सलीम : दोस्त थी। बहुत अच्छी लड़की है यार।

पारो: हाँ वो तो दिख रही थी।

सलीम: अरे सच में अच्छी लड़की है।

पारो: हाँ जा तो शादी क्यों नहीं कर लेता उससे।

सलीम:  नहीं यार। वो बहुतज्यादा अच्छी है। मुझसे अच्छा लड़का deserve करती है।

पफ मरते हुए पारो : अच्छा ये क्यों नहीं कहता की मेरी फटती है ?

सलीम: अबे! मेरी कोई फटती वाटती नहीं है। तू जानती नहीं है कि कॉलेज में कितनी लड़कियां मरती थी मुझ पर।

पारो: सब मर गयी या कोई जिन्दा भी बची ?

सलीम: तू मजाक समझ रही है।  रुक तुझे अभी दिखाता हूँ।

पारो: क्या?

सलीम: अगर एक महीने में लड़की ना पटाई तो देखना।

पारो: अरे सिकंदर। पूरी जिंदगी तुझसे कोई पट जाए तो मेरा नाम बदल देना।

सलीम: एक बॉयफ्रेंड बना कर अपने आप को करीना मत समझ। देखना मैं कैसे लड़की पटाता हूँ।

पारो: अरे मैं भी यही चाहती हूँ। इस ख़ुशी में मैं पूरी मुंबई को पार्टी दूंगी।

सलीम: हाँ बड़ी आई पूरी मुंबई को पार्टी देने। पहले अपने उस सडु बॉस को तो संभाल ले। और सुन जाते वक़्त ये चाय के कप को डस्टबिन में डालते जाना।

पारो: तेरे बाप की नौकर नहीं लग रही। मैं तो चली तू खुद उठकर डाल लेना।

और पारो फिर से ऑफिस की दुनिया में चली गयी तो वही सलीम भी कुछ देर मायूसी सा बैठ कर अपने ऑफिस लोट गया। 

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

खूनी उम्मीद

उसने पूछा - भगवान है ?
मैंने कहा - नहीं।
उसने कहा - अरे पगले ! उसके बिना इतनी बड़ी दुनिया कैसे चलती?
मन ने कहा - उसकी दुनिया कहाँ चली जो
कल माँ के हाथों में दम तोड़ गया।
और वही आज कोई हजारों लाशों पर
कागज के टुकड़ो के सहारे जी गया।

उसके दिमाग ने कहा - कुछ समझ नहीं आया।
अजी उनकी गर्दन ने तो हमको पागल ही
करार दे दिया
शायद उसी बाजार की तरह जहाँ सच
कुरान, गीता, और बाइबिल
की तर्ज पर बड़बड़ाती जबानो के हाथों बिक गया।

यकीन मत मानिये
क्योंकि इसी यकीन पर
एक और शख्श पहचान बना गया
शायद वो भी बाकी की तरह
उम्मीद की सलाखों पर चढ़ गया।

सलीम हिंदुस्तानी आज उम्मीद इतनी जिंदादिल कहाँ?
कही कोई उसके सहारे पुण्य पा गया तो कही जिहाद
तो वही आज फिर से कही धरती माँ का सीना
खून से भर गया।

सलीम हिंदुस्तानी 

पारो और चाय - अध्याय ३

अन्ना की टपरी पर दस्तक देते ही सामने खड़ी पारो जोर से सलीम को गले लगा लेती है ये कहती हुई -आज मैं बहुत खुश हूँ सलीम। सच में बहुत खुश।

सलीम बस कन्धा बना खड़ा रहता है। फिर पारो उसके दोनों कंधो को पकड़कर सलीम की तरफ देखते हुए कहती है -I Love Akash. You know yesterday he came to my house with chocolates, cake and roses. That was a such a great surprise yaar. I was very happy. मैं सातवें आसमान पर हूँ।

सलीम: पर मुझे तो तू यही दिख रही है।

पारो: हाहाहा। मजाक मत उड़ा मेरा। चल अाजा चाय पीते है।

सलीम : नहीं यार, आज चाय पीने का मन नहीं है। बस सिगरेट पीऊंगा।

पारो: ओये क्यों? चल पीले पीले। यार अन्ना की चाय भी ना एक पल के लिए बस.... सब कुछ भुला देती है।

सलीम: सच में? फिर तो तेरे को ये भी याद नहीं होगा की मैं कौन हूँ? आकाश तो याद रहता है ना या उसे भी भूल जाती है।

पारो: हरामी, साले। बस कर। जब देखो तब बकवास चालू कर देता है।

सलीम: हाँ भई, हमारी बातें तो बकवास ही लगेगी और आकाश की बातें तो कोयल की सी बोली।

पारो: मार खाएगा या अपने आप चुप होगा।

सलीम : अच्छा चल ये बता, आकाश इतनी सारी चीज़े लाया कैसे? उसे तो टूथब्रश भी नहीं खरीदनी आती।

पारो: वही तो। उसने मेरे लिए कितने सारे efforts लिए। बहुत क्यूट है यार वो।

सलीम: ( दबी आवाज़ में) हाँ लड़का अच्छा है।

पारो : बस, बस। ज्यादा बड़ाई मत कर। इतना तो हर कोई करता है। मुझसे अच्छा नहीं है वो। ये बता तेरा काम कैसा चल रहा है।

सलीम: बस कट रही है जिंदगी। कर बार ऐसा लगता है की पूरी जिंदगी इस कंप्यूटर के सामने ही कट जाएगी।

पारो: हां यार, क्या क्या सपने देखे थे जब कॉलेज में थे कि नौकरी लगने के बाद ये करेंगे, वो करेंगे, पूरी दुनिया घूमेंगे। अब यह साला घर जाने का भी टाइम नहीं है।

सलीम: कॉलेज के भी दिन थे यार। मत याद दिला उन्हें। रोना आता है।

पारो: हाँ सबका हाल ऐसा ही है। सब मशीन बन चुके है। चल चलते है। तेरा मोटू तो कुछ नहीं कहेगा पर मेरा सडु तो पुरे ऑफिस को अपनी भद्दी गालियों से भर देगा।

सलीम हु की आवाज़ के साथ गर्दन हिलाते हुए चल देता है।

सलीम हिंदुस्तानी


बुधवार, 5 अगस्त 2015

पारो और चाय - अध्याय २

आज पारो तोड़ा जल्दी आ जाती है जिससे सलीम की चाय और सिगरेट तैयार रहती है। पर पारो आज सिगरेट का पफ जल्दी जल्दी मारते हुए इधर कुछ ज्यादा ही देख रही है। सलीम साहब से ये सब देखकर कहा रुका जाता। ये सब देखकर बैठते हुए तुरंत बोले -
सलीम: क्या बात है? आज महारानी जी का नाक थोड़ा चढ़ा हुआ लगता है। तबियत कुछ ठीक नहीं है?

पारो: यार ये लड़के सब एक से क्यों होते है?

सलीम अपनी तरफ भौचक्की निगाहों से देखता है और कुछ अंतराल के बाद कहता है।

सलीम: क्यों आकाश ने कुछ कह दिया क्या?

पारो: नहीं! समस्या तो यही है। वो कुछ कहता ही तो नहीं। देख, आज मेरा जन्मदिन है और उसने मुझे अभी तक फोन नहीं किया है। कोई किसी का जन्मदिन कैसे भूल सकता है यार।

सलीम: अरे! आज तेरा जन्मदिन है ? हैप्पी बर्थडे यार ! जन्मदिन मुबारक हो। पर कम से कम आज तो छुट्टी ले लेती।

पारो: कहा यार। इतना काम पड़ा है। कौन करता फिर?

सलीम: अच्छा अब ये सब छोड़। ये बता क्या गिफ्ट लेगी अपने जन्मदिन पर ?

पारो: नहीं मुझे कोई गिफ्ट विफ्ट नहीं चाहिए।

सलीम: ऐसे कैसे हो सकता है। बोल तुझे क्या चाहिए ? अच्छा चल ये बता बर्थडे पार्टी के लिए कहा चलना है?

चाय की चुस्की लेते हुए पारो: आज नहीं यार ! फिर कभी चलते है आज रूममेट्स के साथ प्लान बना हुआ है।

सलीम: चल कोई ना। अप्पन फिर कभी चलेंगे।

पारो: हाँ। पक्का।

सिगरेट का पफ आज सलीम के पैरों से थोड़ा जोर से कुचला जाता है। तो वही पारो एएएएएए की आवाज़ निकाले बिना ही अपने ऑफिस की ओर रुख करती है। सलीम कुछ देर अपने ऑफिस की तरफ  चलता है और फिर वापस आकर सिगरेट जलाते हुए अन्ना से एक और चाय की फरमाइश करता है।

सरकारी स्कूल अच्छे है ।

यह गाँव का आँगन है ।  ज्ञान का प्रांगण है ।  यहाँ मेलजोल है ।  लोगों का तालमेल है ।  बिना मोल है फिर भी अनमोल है ।  इधर-उधर भागता बचपन है । ...