इंतज़ार


आज तुम अभी तक नहीं आई हो, मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी। याद है जब तुम पहली बार आई थी तब से ही तुम मेरी चहेती बन गयी थी। तुम जब सीना तानकर मेरे सामने खड़ी होती तो लगता कि मेरे हठपन को चुनौती दे रही हो। तुम कहती कि मैं तुम्हारे रास्तें में रुकावट बन कर खड़ी  हूँ और तुम्हे मंजिल पहुँचने में बेवजह देरी पहुंचाती हूँ। तुम सही भी थी क्योँकि तुमको ना जाने कितनी बार मुझसे और मेरी सहेलियो से टकराना पड़ता था। क्या करे हमारी मंजिल भी यही और हमारा घर भी यही। हमें तो रोजाना बस एक जगह खड़े खड़े तुम जैसो को सलामी ठोकनी पड़ती है। आखिर हमारा नसीब तुम्हारे जैसा कहाँ, जो पूरा शहर घूमने को मिलें। ना जाने कितने ही चेहरे अलग अलग प्रतिक्रिया लिए हुए तुम्हारे साथ सफर करते है। वो सभी तुम्हारे साथ मंजिल को पाने की दौड़ में शामिल हो जाते हैं। कुछ थोड़े दुखी होते है, तो कुछ उत्साह से भरे हुए, कुछ तुम्हे समय पर आता देख ख़ुशी से झूम उठते है तो कुछ तुम्हारे लेट होने की वजह से जमाने से लेकर मौसम तक और नेताओ से लेकर अपनी नौकरी सभी चीजोँ को बारी बारी कोसते है। हालांकि तुम्हे देखते ही सब-कुछ भुलाकर दौड़ पड़ते है अपनी मंजिल के रास्तो का हमसफ़र बनाने। कुछ की मंजिल थोड़ी पास होती है तो कुछ की थोड़ी दूर।

कमबख्त तुम भी लोगो के साथ बड़ी दुभात करती हो। कुछ को अपने आँचल में बिठाती हो तो कुछ को खड़े खड़े ही उसकी मंजिल तक ले जाती हो। पर पता है हमारे साथ सभी लोगोँ का एक सा बर्ताव रहता है। सभी हमारे चेहरो को अपनी निगाहोँ से देखते है। हाँ कुछेक के चेहरे पर लाचारी भी झलकती है। सभी बस जैसे हमारे चेहरे बदलने का इंतज़ार करते है।  पता है जब हमारा चेहरा लाल होता है (वो गुस्से वाला) तो लोगोँ का चेहरा उतर जाता है। बड़ा मजा आता है कमबख्त लोगोँ की मजबूरी देखकर।जैसे ही हमारे चेहरे का रंग बदलता है बस चालु हो जाती है उनकी भागदौड़ और हर कोई एक दूसरे से आगे निकालना चाहता है।

अरे हाँ ! मैं तो भूल ही गई। बातें करते करते ना जाने मैं कहा भटक जाती हूँ। हाँ तो वो ये कि जब तुम आई थी तो तुम्हारे जैसे हमसे टकराने वाले बस कुछ ही थे पर आज देखो कैसे चीटीँयो की भाँती भीड़ लगी हुई है।तुम हमेशा से एक ही सूट पहनती हो वो लाल, पीले पीलें छीटों वाला। और तुम्हारे सूट पर दूर से चमकता है - १५१।  जिसे देखते ही धड़कने जैसे थम सी जाती है।  मन करता है बस दिन भर तुम्हे घूरती रहूँ और तुम यही मेरे पास खड़ी रहो। पर तुम चली जाती हो मुझे छोड़कर और मैं यही रंग बदलती रह जाती हूँ। 

मालूम नहीं आज मुझे सुबह से ही थोड़ी घबराहट सी होने लगी थी और फिर पता चला कि तुम आज नहीं आ पाओगी। किसी ने बताया की तुम्हे जला दिया गया है। आये थे कुछ लोग झुंड़ हाथ में तलवारे और मशाले लिए हुए अपने मजहबी धर्म का बदला लेने। और सामने दिखाई दी तुम एक गूंगी बहरी।  एक बार तो मुझे तुम पर भी गुस्सा आया कि तुम वहां क्या करने गयी थी।  क्या जरुरत थी तुम्हे वहां जाने की। पर फिर ख्याल आया कि ये तो तुम्हारा काम था और वैसे भी पिछले १२ सालों से भी वहां जा ही रही थी। किसी ने ये भी बताया कि जलाने से पहले तुम्हारे साथ बहुत मारपीट हुई।  तुम्हारी आँखों को फोड़ा गया , जिस्म को जगह जगह से कुरेंदा गया। ये सुनकर तो मेरी रूह ही काँप जाती है।  मन करता है कि तुम्हारे साथ ये सब करने वालों को इतना मारू इतना मारू  .... क्या बिगाड़ा था तुमने उनका।  बस यही कि रोज तुम ऐसे लोगों को अपने aanchal से लगाती।  ऐसे लोगों को जो आज तुम्हारे खून के प्यासे हो गए।  पता चला है कि कल तुम्हारी जगह कोई और ले लेगी। naa जाने कैसी होगी वो। तुम्हारी तरह मुझसे नजर मिला पाएगी या नहीं, पता नहीं।  

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