नमस्कार दोस्तों! । ये किसी स्टेज पर मेरा पहला मौका होगा सो आप लोगों से ख़ास अनुरोध है की अगर मेरी जबान लड़खड़ा जाए या पैर कांपने लगे तो सीटी और आवाज़ों से ही काम चला ले। जूते चप्पलों  का सहारा ना ले। कहना जरुरी है क्योंकि देश का वर्तमान माहौल काफी असहिष्णु है।  फिर भी न्याय देना चाहे तो बाहर ले जाकर दे। आखिर मेरे लिए भी पीटना जरुरी है। किसी ने लिखा है की पीटने के बाद अच्छा लिखा जाता है और मैं तो लेखक बनने के लिए पाकिस्तान जाने को भी तैयार हूँ। 
वैसे पीटने पिटाने से मेरा रिश्ता काफी पुराना है। पिटाई से पहली बार सामना पड़ा था जब दादी को बुढ़िया कहा था। दूसरे बार एक बुड्ढे की धोती खींचने पर और तीसरी बार लड़की को देख सीटी मारने पर। उसके भाई की मार अब तक दुखती है। देखो माथे पर निशान भी है।
आप भी सोचते होंगे कैसा आदमी है। जब देखों पिटता रहता है, इसको तो  इंडियन हॉकी टीम में होना चाहिए। मगर बता दे हमने पीटने में भी डिग्रीयां ले रखी है। आपको शायद मालूम नहीं होगा जब उस कल्लू ने हमारी लाजो को गन्दी निगाह से देखा था तो हमने ससुरे को पिट पीटकर लहू लुहान कर दिए थे।

लोग हमसे अक्सर पूछते है तुम हरयाणवी ये सोशल वर्क पढ़ने कैसे आ गए। लोगों को तो मैं कह देता हूँ कि समाज सेवा की भावना बचपन से थी। थोड़े दिनों में कहूंगा कि लेखक बनने की श्रद्धा भी थी। मगर आपको बता दू कि भावना और श्रद्धा तो हमको पहली बार कॉलेज में मिली थी।  बड़ी ही अच्छी लड़कियां थी। सच तो ये है कि हमने सरपंच की बिटियां लाजो को फंसा लिया था। अपने संग भगाने ही वाले थे कि सरपंच को पता चल गया। हम तो किसी तरह जान बचकर भागे वहाँ से और सीधे पहुंचे बॉम्बे। अब ये मत पूछना लड़की का क्या हुआ ?

बम्बई में टाटा में समाज सेवा पढ़ने लगे। और जब महाराष्ट्र सरकार ने बीफ बैन का कानून निकाला तो एक सच्चे समाजसेवी के नाते बीफ बैन के विरुद्ध मोर्चा खोलने ही वाले थे कि किसी कृष्ण यादव का फ़ोन आया।  कहने लगे -यादव जी सुना है आप बीफ बैन के खिलाफ मोर्चा निकाल रहे है।
हमने कहा - हाँ ! आपने सही सुना।
तुरंत गुस्सा करते हुए बोले - क्या यादव जी हमें आपसे ये उम्मीद कतई नहीं थी। अरे हम यहाँ बछड़े लिए हुए बंसी बजा बजा कर गोपी को खुश करने की कोशिश कर रहे है और एक आप है कि हमारे बछड़े के पीछे पड़े है। अब देखो भैया हम किसी के प्यार के बीच में नहीं आ सकते।
सो हमने कहा - ठीक है कृष्ण जी। आप अपने बछड़े और गोपी के साथ बंसी बजाइए, हम तो बैल से ही रैली निकाल लेंगे।
सोचा ! यार बैल से तो किसी का याराना नहीं होगा। ये सोच ही रहा था कि फिर से फ़ोन बजा। आवाज़ आई कि कोई शिवप्रसाद भोलेनाथ बोल रहे है।
उन्होंने पुछा - यादव जी सुना है आप हमारे बैल को रैली में लेकर जा रहे है।
हमने कहा - जी, सही सुना आपने।
अगले दो मिनट तक हमे गालियों से सजी हुई उपाधियां मिलने लगी।  हमने भी सर झुकाए ग्रहण कर ली।  फिर पुछा भाईसाहब आपको भी किसी गोपी को खुश करना है। आवाज़ आई भैया गोपी को मारो गोली यहाँ पहले खुद तो खुश हो ले।
लो भैया ये फिर से दिल का मामला आ टपका। वो क्या है ना दिल के मामले में हम दखलंदाज़ी नहीं करते।  सो हमने तुरंत फ़ोन पटका और सोचा ले बेटा बलजीत बन ले आंदोलनकारी। यहाँ तो पूरा करियर ही चौपट हो गया। अब किसके सहारे रैली निकलूंगा।
लाजो की याद आने ही लगी थी कि कलम दिखाई दे गयी। सोचा यार लाजो की वजह से तो गांव छूट गया। कलम ही ठीक है। कम से कम पिट- पीटाकर  एक दिन लेखक तो बन जाऊंगा।

धन्यवाद !!

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