देश के जज्बाती युवाओं के नाम एक खुला पत्र

देश के जज्बाती युवाओं के नाम एक खुला पत्र

मित्रों,
इस खत को लिखते वक़्त ना ही मैं गर्व महसूस कर रहा हूँ और ना ही निराशा। पर हाँ एक अजीब की सिकुडन में फंसा हुआ लगता हूँ। आज जब कभी मैं सोशल मीडिया पर देश के भविष्य की टिप्पणियां पढता हूँ तो मुझे लगता है कि आज का युवा केवल सही और गलत की बंटाधार लड़ाई में बट चूका है। वो शायद अपनी तर्कसंगत वाली पहचान खो चूका है या उसकी सोचने की शक्ति पर पहरा है। 
नई सोच की उम्मीदों वाले देश में ही आज सोचने पर पहरा लग गया है  और ये पहरा किसी और ने नहीं हम सब ने अपने आप लगाया है।  ऐसा नहीं है कि ये कोई नई चीज़ है या इत्तिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। परंतु आज की आधुनिक दुनिया ने सोचने की अक्षमता को कई गुना शक्ति प्रदान की है . ऐसे व्यक्ति जिनको देसी भाषा में भेड़ चाल चलने वाला कहा जाता है एक दायरे में आ गए है। उनको अपने आपको सही करार देने का मौका हाथ में मिला हुआ है। स्तिथि यह है की एक इंसान अपने आपको सही करार देता ही है की उसके दायरे (साझी सोच) वाले लोग उसको महान बताकर उसका प्रचार प्रसार करने लग जाते है। तो वही उसके विपक्षि  (विरोधी सोच) वाले लोग उसे झूठा साबित करने में लग जातें है 
और यहाँ से शुरू होती है पक्ष विपक्ष की लड़ाई। अगर आप किसी एक दायरे के पक्ष में है तो आपको विपक्षी दल को झूठा साबित करना ही करना है। एक बार भी आप उस पर सोचने का भार नहीं डालना चाहते। अगर आपको लगा कि विपक्ष सचमुच सही है तो मन ही मन बोलोगे - अरे यार ! कह तो सही रहा है लेकिन अपने दायरे का थोड़े ही है।  आप या तो उसके विरोध में कहानी चालु रखोगे या उसको सच्चे दिल से ignore मार दोगे।  
आज आपने इतिहास को भी इसी तरह बात दिया है और देश के लिए कुर्बानियां देने वाले क्रांतिकारी आपके दायरों में बात गए है .सबने अपनी अपनी सुविधानुसार क्रांतिकारियों पर अपना हक़ कब्ज़ा लिया है। सच्चाई की तह तक जाए बगैर आपने इधर उधर से अपनी सोच वाली सामग्री इकठ्ठा कर उसको अपने हिसाब से इतिहास बना दिया है। और आपके दायरे के लोग उसका प्रचार प्रसार करने में लगे है। सोचिये क्या होता अगर आज़ादी के समय हमारे देश के भविष्य निर्माता इस तरह आपस में एक दूसरे पर कीचड़ उछालकर लड़ रहे होते।  ऐसा नहीं है कि वो सब एक सोच रखते थे बल्कि उनके सबके अपने स्वतंत्र मत थे . और उन्होंने अपने मतों की पूरी व्याख्या भी दी है। पर जब देश की बात आती थी तो वो सब अलग-अलग मतों वाले लोग एक साथ आकर बैठते थे और विपक्षी मतों को समझकर ध्यान में रखते हुए सही निर्णय निकालते थे। कुछ लोग बड़ी आसानी से कह देते है कि आज़ादी के तुरंत बाद ऐसा ही होता है, उनके पास एक साथ बैठने के अलावा कोई और चारा नहीं था। हालांकि बहुत से देशों में ऐसा नहीं हुआ और आज वो देश वापस गुलामों की बेड़ियों में जा चुके है। 
चलिए मैं आपको इतिहास से वापस वर्तमान मैं लाता हूँ आपके प्रिय नेता के पास। ऐसा लगता है कि आपने किसी एक नेता के बारें में बोलने की आज़ादी का पंजीकरण करा लिया है।  अब आपके नेताजी पर जो कोई टिपण्णी करेगा आप उसे तुरंत दायरे में डाल लोगे। अगर आजकल आपको कोई युवा खूश और तंदूरस्त दिखे तो समझ जाना उसके विपक्ष का भरपूर मजाक उड़ाया जा रहा है . 
देश का युवा आज गाडी का वो पहिया बन चूका है की उसको राजनीतिक पार्टियां जहाँ ले जाना चाहती है वहां  ले जा रही है।  राजनीतिक पार्टियों की फिट की हुई चाबियाँ आपकी सोच पर इस कदर आती पालती मारकर बैठ गयी है कि जब वो चाहे, जिधर चाहे, आप उसी वक़्त उधर चलने लग जाते है। जिस तरह गुलाम व्यक्ति नशे में ही अपनी आज़ादी को महसूस कर पाता है उसी तरह एक दूसरे की बुराई या बर्बादी पर ही आपकी आज़ादी की अभिव्यक्ति टिकी हुई है।  सलाह देने की औकात तो नहीं रखता पर इतना जरूर कहूंगा कि वो अपनी स्वतंत्र सोच रखे।  अपने नेताओं और चहेतों से सवाल करे और अपने विपक्षियों से मुद्दे पर चर्चा करे।  

राम-राम 

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