बॉम्बे
हाई कोर्ट के दलित मज़दूरों
की व्यथा-
BALJEET
बॉम्बे
high कोर्ट
में ६० से अधिक दलित मज़दूर
रोजाना साफ़ सफाई का काम करते
है। हर जगह की तरह हाई कोर्ट
का साफ़ सफाई का काम भी रोजाना
नियमित रूप से चलता है परन्तु
यहाँ काम करने वाले लोगो का
भविष्य केवल एक या दो साल के
लिए टिका होता है। मतलब यू की
इन लोगो को ठेकेदारो के अन्तर्गत
काम करना होता है तथा ठेकेदारो
के बदली होने के साथ साथ इन
सफाई कामगारों को भी निकाल
दिया जाता है। एक अत्यावशयक
तथा नियमित रूप से होने वाले
काम के कारण सफाईं के काम में
कॉन्ट्रैक्ट कामगारों को
रखना गैरकानूनी है।
परन्तु
हाई कोर्ट ने सब कानूनो की
धजिया उड़ाते हुए कामगारों
को अस्थाई तोर पर रखा हुआ है।
केवल इतना ही नहीं ये सभी कामगार
कम से कम मिलने वाली सुविधाओ
से भी वंचित है। कॉन्ट्रैक्ट
कामगारों को मिलने वाली आधी
सुविधाये भी इन्हे नहीं मिलती।
बाकि सब सुविधाये पाना तो
इनके लिए चाँद पर जाने के बराबर
है।
महिला
कामगारों को जहाँ मासिक वेतन
५७०० रुपया मिलता है वही पुरुष
कामगारों को ६२०० रुपया मिलता
है। उच्चतम न्यायालय के अनुसार
महिला तथा पुरुष दोनों को
सामान काम के लिए सामान वेतन
मिलना चाहिए परन्तु यह भी
बॉम्बे हाई कोर्ट कानून को
नजरअंदाज कर रहा है। मुंबई
में मिलने वाला किमान वेतन
३२९ रूपये प्रतिदिन है जो एक
महीने का ८५५४ रूपये बनता है।
हाई कोर्ट में सफाई का काम
करने वाले एक कामगार के शब्दों
में " किमान
वेतन मिलना हर मज़दूर का हक़ है।
पर जब न्याय देने वाले न्यायालय
में ही जब मज़दूरों की ये हालत
हो तो मज़दूर जाए तो खा जाए।
चिकित्सा सुविधा तथा भविष्य
निर्वाह निधि जैसी मुलभुत
सुविधाये मिलना तो सफाई कामगारों
की पहुंच से कोसो दूर है।
ज्यादातर मज़दूरों को इन सब
सुविधाओं का नाम मजाकिया लगता
है। सभी मज़दूरों का काम सुबह
७:३० पर
शुरू होता है जो दोपहर को ३:३०
पर खत्म होता है। एक महिला
मज़दूर पूछने पर अपनी व्यथा
इस कदर जाहिर करती है -
" मैं रोजाना
अपने घर से (जो
की टिटवाला में है) सुबह
५:१० की
ट्रैन से निकलती हु तथा ७:३०
पर मैं हाई कोर्ट पहुचती हूँ।
इस पुरे सिलसिले के बावजूद
भी मुझे सिर्फ ५७०० रूपये
मासिक मिलते है . जिससे
मैं पूरी तरह से अपना घर चलाने
में असमर्थ हूँ। मैं अपने
बच्चो को पढ़ाना लिखाना चाहती
हूँ पर इस महंगाई के ज़माने में
ये सब असंभव है , लगता
है हमारे बच्चो को भी हमारी
तरह दर दर की ठोकरे खानी पड़ेगी।
बहार वाले लोगो को लगता है की
पता नहीं इन लोगो की कितनी
पगार है। परन्तु हमारा दुखड़ा
सुनकर किसी को यकीन ही नहीं
होता।"
ये
सभी मज़दूर दलित समाज से तलूक
रखते है तथा वर्षो से भारतीय
समाज की जटिलता के कारण पीढी
दर पीढी इसी काम को करते आये
है। परन्तु आज भी इन्ही इनके
अधिकार तथा मुलभुत सुविधाओें
से वंचित रखा जाता है। बॉम्बे
हाई कोर्ट जो पीड़ितों को न्याय
देने के लिए जाना जाता है इस
कदर अपने कोर्ट के आँगन में
काम कर रहे कामगारों को भुखमरी
की और धकेल रहा होगा सुनकर
यकीन नहीं होता परन्तु मज़दूरों
की दयनीय स्तिथि का नजारा
रोंगटे खड़ा कर देने वाला होता
है।
मेरी
बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश
से यही गुजारिश है की इन मज़दूरों
की हालत पर धयान दे तथा उन पर
हो रहे अत्याचार को रोके।
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