देश के जज्बाती युवाओं के नाम एक खुला पत्र
देश के जज्बाती युवाओं के नाम एक खुला पत्र मित्रों, इस खत को लिखते वक़्त ना ही मैं गर्व महसूस कर रहा हूँ और ना ही निराशा। पर हाँ एक अजीब की सिकुडन में फंसा हुआ लगता हूँ। आज जब कभी मैं सोशल मीडिया पर देश के भविष्य की टिप्पणियां पढता हूँ तो मुझे लगता है कि आज का युवा केवल सही और गलत की बंटाधार लड़ाई में बट चूका है। वो शायद अपनी तर्कसंगत वाली पहचान खो चूका है या उसकी सोचने की शक्ति पर पहरा है। नई सोच की उम्मीदों वाले देश में ही आज सोचने पर पहरा लग गया है और ये पहरा किसी और ने नहीं हम सब ने अपने आप लगाया है। ऐसा नहीं है कि ये कोई नई चीज़ है या इत्तिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। परंतु आज की आधुनिक दुनिया ने सोचने की अक्षमता को कई गुना शक्ति प्रदान की है . ऐसे व्यक्ति जिनको देसी भाषा में भेड़ चाल चलने वाला कहा जाता है एक दायरे में आ गए है। उनको अपने आपको सही करार देने का मौका हाथ में मिला हुआ है। स्तिथि यह है की एक इंसान अपने आपको सही करार देता ही है की उसके दायरे (साझी सोच) वाले लोग उसको महान बताकर उसका प्रचार प्रसार करने लग जाते है। तो वही उसके विपक्षि (विरोधी सोच) ...