कहा था गांधीजी ने सदा सच बोलो पढ़ाया था बचपन में मास्टर जी ने ये सत्य कड़वा होता है, सत्य की सदैव जीत होती है, किताबो में पढ़ा था हमने। इसी कवायद से काफी कम झूट बोला हमने फलस्वरूप कक्षा में कम अंक पाए घर में कम मिठाई पाई मैदान में ज्यादा फील्डिंग की और कॉलेज में तो पूरी दुनिया ही आगे निकल गयी अतीत से लेकर आज तक जिद की सच की छोटी सड़क बनाने की हमने पर वो आये सच का शस्त्र लेकर और न जाने कब झूट की खाई खोद गए हमारी सड़क के नीचे और अचानक एक दिन धस गए हम उसमे कोशिश की, बाहर निकले और फिर से निकल पड़े थोड़ी सच की सड़क बनाने फिर कोई आया अपनापन का शस्त्र लेकर साथ में सच्चाई की दुहाई लिए हुए और न जाने कब झूठ की खाई खोद गए हमारी सड़क के नीचे और अनजाने में हम धँस गए अपनी ही सड़क के नीचे। अभी भी धसे हुए है। सोचते है कि क्या होता अगर गांधीजी ने सच्चाई का कथन ना कहा होता किताबो ने सच्चाई का जिक्र न किया होता तब शायद हमने भी सच की सड़क बनाने की जिद न की होती शायद कोई अपना हमें खाई में न धसा पाता काश! गांधीजी ने ये कहा न होता।