खूनी उम्मीद
उसने पूछा - भगवान है ? मैंने कहा - नहीं। उसने कहा - अरे पगले ! उसके बिना इतनी बड़ी दुनिया कैसे चलती? मन ने कहा - उसकी दुनिया कहाँ चली जो कल माँ के हाथों में दम तोड़ गया। और वही आज कोई हजारों लाशों पर कागज के टुकड़ो के सहारे जी गया। उसके दिमाग ने कहा - कुछ समझ नहीं आया। अजी उनकी गर्दन ने तो हमको पागल ही करार दे दिया शायद उसी बाजार की तरह जहाँ सच कुरान, गीता, और बाइबिल की तर्ज पर बड़बड़ाती जबानो के हाथों बिक गया। यकीन मत मानिये क्योंकि इसी यकीन पर एक और शख्श पहचान बना गया शायद वो भी बाकी की तरह उम्मीद की सलाखों पर चढ़ गया। सलीम हिंदुस्तानी आज उम्मीद इतनी जिंदादिल कहाँ? कही कोई उसके सहारे पुण्य पा गया तो कही जिहाद तो वही आज फिर से कही धरती माँ का सीना खून से भर गया। सलीम हिंदुस्तानी