बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

सुनीति से कुल्टा तक का सफर


मेरे खुद के चाचा के लड़के ने मुझसे कॉलेज के बाद मिलने के लिए कहा। जब मैंने पुछा क्या बात है तो उसने कहा कि मिलकर बाद में बताऊंगा। जब मैं कॉलेज के बाद उससे मिलने गयी तो वो मुझे सिनेमा दिखाने की बातें करने लगा। कहने लगा सनी देओल की नयी फिल्म आई है। मुझे भी कहाँ होश था , सोचा अगर इतना कह रहा है तो एक फिल्म जाने में क्या हर्ज है आखिर अपने चाचा का ही तो लड़का है। फिल्म जाने लगे तो कॉलेज से निकलते वक़्त उसके कुछ दोस्तों ने तरह-तरह की आवाज़ें निकली। शायद वो आवाजें मुझे सावधान करने के लिए थी। मगर मैं भी वक़्त की मारी कुछ नहीं समझी और फिल्म के लिए चली गई। हमने अच्छे से पूरी फिल्म देखी और घर वापस आ गए।
अगले कुछ दिन तक सब कुछ नार्मल रहा। हाँ उसके हमारे घर के चक्कर कुछ ज्यादा ही बढ़ गए थे। वो मेरी माँ के कामों में चाहत से ज्यादा ही मदद करने लगा था। लेकिन मुझे इसके पीछे उसके मंसूबे मालूम नहीं थे। एक दिन जब मैं खेत में गयी  तो पता नहीं वो कहाँ से वहां पर आ टपका। उसने मुझसे कहा कि मुझे बहुत प्यार करता है और वो मेरे बिना नहीं रह सकता। मैंने उसे समझाया कि पागल मत बन , हम भाई बहन है। इसके अलावा हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है। मगर उसपर तो पता नहीं कोण सा भूत सवार था। उसने कहा - जब ये सब नाटक करना था तो मेरे साथ फिल्म देखने क्यों आई ? और ये सब कहकर वो मेरे पास आने लगा। बहुत समझाने पर भी जब वो नहीं माना तो मैंने उसे एक  थप्पड़ जड़ दिया। वो बिना बोले चुपचाप वहां से निकल गया। मुझे बहुत डर लग रहा था पर लगा कि अब बला टल गयी है  और मैं घर वापस आ गयी।
मैंने घर आकर सब कुछ अपनी माँ को बतला दिया। माँ ने कहा कि मैंने कोई गलती नहीं की है और माँ ने सीधे उसके घर जाकर उसकी माँ को सारी बातें बताई। उस वक़्त मेरी माँ के सामने तो उसने कहा कि वो अपने बेटे को समझा देगी और अपने बेटे को गालियाँ देने लगी। माँ घर वापस आ गयी।
पर दुसरे दिन ये बात पुरे गावं में फ़ैल चुकी थी कि मैंने लड़के के साथ जबरदस्ती कुछ करने की कोशिश की थी। जिस रास्तें से भी हम जाते वहां खड़े लोग हमारा भद्दी भद्दी गालियों से स्वागत करते। सभी गावं वाले मेरे करैक्टर का सर्टिफिकेशन करने में लगे हुए थे। माँ बाप का घर से निकलना बंद हो चूका था। तब मुझे समझ में आया कि काश मैं कॉलेज की उन लडको की आवाज़ों का मतलब समझ लेती तो कम से कम ये दिन तो नहीं देखने पड़ते।
खैर कुछ दिन बाद हमारे हमदर्द हमारे घर आने लगे तरह तरह के रिश्ते लेकर। जो बाप अपनी बेटी को पढ़ाने के सपने देखता था वही बाप आज उसे कॉलेज भेजने पर पछता रहा था। मेरे पास कहने को कुछ नहीं था और अगर था भी तो कोई सुनने वाला नहीं था। भाई होता तो शायद समझ लेता मगर वो अभी केवल १० साल का था और मैं अकेली घर में कैद हो चुकी थी। मेरा काम बस चाय बनाकर लड़कों वालो को पिलाना था और सरमाते हुए मुहं लटकाकर उन्हें नमस्कार करना था।

 झाड़ू लगाते हुए सुनीति ये सब बडबडा रही थी। अपनी ढेढ़ साल की बेटी के सामने, जो चुपचाप टकटकी लगाये अपनी माँ को देख रही थी और बीच बीच में दोनों हाथों को उठाकर य.य की आवाज़ निकल देती थी। शायद वो अपनी सहमति जाता रही थी।
एक मिनट कुछ ख्वाबों में खोई हुई सुनीति वापस अपना इतिहास दोहराना चालू कर देती है। 

और फिर तेरे बाप का रिश्ता आया मेरे लिए , ये जो तेरी ताई है ना, ये ही लायी थी ये रिश्ता मेरे लिए। तेरा ताऊ कहने लगा कि उन्हें कोई दहेज नहीं चाहिए। उन्हें तो सिर्फ लड़की चाहिए और थोड़े से बारातियों के लिए हल्का-फुल्का खाने का इंतजाम। तेरा बाप कुछ कमाता नहीं था। मेरी माँ मेरी शादी किसी सरकारी अफसर से शादी कराना चाह रही थी। पर सरकारी नौकरी लगते ही यहाँ के लोग बड़ा बड़ा ख्वाब देखने लग जाते है जैसे पता नहीं पूरा आसमान ही लूट ले। मेरे बाप बेचारे के पास इतने पैसे कहा से आते ? और तेरी ताई ने तो हमारे घर ही चूल्हा डाल लिया था। वो दिन रात तेरे चाचा की बड़ाई करती रहती, कहने लगी सास भी नहीं है , बस वो ही है। घर में दो महिला ही रहेगी। बड़ा भाई नौकरी है , छोटे वाला खेती संभाल लेगा। और आख़िरकार मेरे थके हारे माँ बाप ने मेरी शादी तेरे बाप से करवा ही दी।

पल्लू से अपना मुहं पूछते हुए -

वैसे तेरा बाप बड़ा सीधा आदमी था। पर क्या करता , बेचारे की किस्मत में कुछ और ही लिखा था ? शुरुआत में तो वो मेरा बड़ा ख्याल रखता ? मुझे जैसे ही घर की याद सताती वो तुरंत कुछ ना कुछ करके मेरा मन बहला देता। पर मुझे कहा मालूम था कि मेरे नसीब में इतनी ही ख़ुशी लिखी है। शादी के कुछ महीनो बाद मुझे पता चला कि उसे टीबी है। उसे लगा की मुझे बुरा लगेगा इसलिए मुझे पहले नहीं बताया। टीबी उसे शादी से पहले ही था पर दवाई खाने से वो ठीक हो गया था। कहते है दो साल वो बिलकुल ठीक रहा और इसी बीच में हमारी शादी करा दी। जैसे ही मुझे पता चला कि उसे टीबी है मैं तुम्हारी तेरी ताई पर आग बबूला हो गयी कि उन्होंने मेरी शादी एक टीबी मरीज से क्यों कराई। वो कहने लगी - 'गावं के लोग ताना मारते थे , तेरे जेठ पर कि माँ बाप नहीं है इसलिए छोटे भाई का रिश्ता नहीं करा रहा। जमीन खाएगा भाई को रंडवा रखकर ये सब ताने भी दिए जाते और फिर हमें क्या मालूम था कि वो ठीक नहीं होगा। हमें लगा कि साल दो साल में ठीक हो ही जाएगा।'
 मेरी आँखों के सामने जैसा अँधेरा सा छा गया था। कुछ दिन तो मैंने खाना भी नहीं खाया। पर फिर क्या करती उन्हें छोड़ भी नहीं सकती थी। धीरे धीरे उनकी सेवा करने लगी पर पता नहीं उसने बिलकुल उम्मीद ही छोड़ दी थी। मैं आज तक उससे इस बात पर गुस्सा हूँ। आखिर क्या कमी रह गयी थी मेरी खातिरदारी में जो उसने इतनी जल्दी हार मान ली थी।  बैगर  जवाब दिए ही ऊपर चला गया। क्या करू नसीब है अपना अपना। अब पूरी जिन्दगी ऐसे ही गुजारनी पड़ेगी।

पानी पीयेगी ? ये ले मैं लाती हूँ। मटके से पानी लेने की आवाज़ के बाद चप्पलो की आवाज़ ...अ.. ले ..पी ले

पर इतने सब से तेरी माँ की मुसीबतें टलने वाली नहीं थी। तेरे बाप के मरने के एक महीने बाद ही हमारे घर के आस-पास से लोग निगाहें उठाकर चलने लगे कि कब मेरे दर्शन हो। अकेली औरत को तो ये मर्द लोग बाजारू समझ लेते है। कमबख्त वो कल का लौंडा भी वक़्त देखकर घर में घुसने लगा।
एक दिन मैं अकेली चारा काट रही थी, वो घर में आ गया लाइट पूछने के बहाने। जब उसने देखा कि मैं अकेली चारा काट रही हूँ तो कहने लगा कि लो भाभी मैं आपकी मदद करता हूँ, आप मुझे बुला लिया कीजिये घर की ही तो बात है। और फिर क्या था बस चालू हो गया उसका रोजाना मेरे घर आना जाना कभी किसी बहाने , कभी किसी बहाने। मैं भी वक़्त की मारी थी। सोचा कोई तो है जो इस अकेली औरत की मदद करता है। मगर भगवान् से हम औरतों का सुख कहाँ देखा जाता। पता नहीं उस हरामी के बीज ने क्या खबर फलाई गावं में या गावं वालों ने अपने आप ही कहानियां घड ली। पर मैं पुरे गावं का बलि का बकरा बन गयी थी। सभी लोग मुझमें खोट निकाल रहे थे। मर्द लोग मुझे देखकर अपनी धोती ऊपर उठाने लगते। जैसे सब लोग एक साथ अपनी हवस मुझ पर उतरने को आतुर है। तेरी ताई ने भी मुझसे लड़ाई कर ली। वो औरत जो मुझे अपनी छोटी बहन कहती थी पता नहीं क्या क्या कहने लगी।  उसने यहाँ तक कह दिया कि मैंने ही उसके देवर को यानी कि तेरे बाप को मारा है। जैसे मेरा तो वो कुछ लगता ही नहीं था। आज दुनिया ने मुझे ही उसका दुश्मन बना दिया। पड़ोसन ने छाछ देने से भी मन कर दिया। एक तरह से पुरे गावं ने मुझे कुलटा करार दे दिया।
गावं की औरते जिनके मर्द दिनभर पराई औरतों की फ़िराक में रहते है और वो खुद ना जाने कहाँ कहाँ जाती है बस मुझे ही कोसने लगी। अच्छा है चलो मेरे बहाने सबकी भड़ास तो निकल गयी। चलो किसी नौजवान लड़की के साथ तो ये नहीं हुआ। शायद इसी के साथ बाकी लड़कियों को नसीहत मिल गयी और  वो सब मेरी तरह कुलटा होने से बच गयी। 
तुझे मैं खूब पढ़ाऊंगी। पढ़कर खूब बड़ी अफसर बनाना , इस दलदल में तू मत रहियों। और मुझे भी अपने साथ ले जाना कही दूर शहर।
ले आजा तुझे दूध पिलाती हूँ। भूख लग गयी होगी।

सरकारी स्कूल अच्छे है ।

यह गाँव का आँगन है ।  ज्ञान का प्रांगण है ।  यहाँ मेलजोल है ।  लोगों का तालमेल है ।  बिना मोल है फिर भी अनमोल है ।  इधर-उधर भागता बचपन है । ...