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Showing posts from 2014

Tribunal asks BMC to give permanent status to 2,700 conservancy workers

http://indianexpress.com/article/cities/mumbai/tribunal-asks-bmc-to-give-permanent-status-to-2700-conservancy-workers/

२७०० दलित सफाई मज़दूरों की ऐतिहासिक जीत

२७०० दलित सफाई मज़दूरों की ऐतिहासिक जीत हाल ही में मुंबई के २७०० दलित मज़दूरों ने मुंबई महानगरपालिका के खिलाफ एक ऐतिहासिक जीत दर्ज़ की है। इस लड़ाई की शुरुआत १९९७ में सफाई मज़दूरों ने कचरा वाहतूक श्रमिक संघ नामक यूनियन की अगुवाई में की। कचरा वाहतूक श्रमिक संघ मज़दूरों के हक़ में लड़ने वाली एक अग्रणी मज़दूर यूनियन है जिसकी स्थापना १९९७ में मुंबई के कुछ सफाई मज़दूरों ने कामरेड दीपक भालेराव तथा कामरेड मिलिंद रानाडे की अध्यक्ष्ता में की।  सभी सफाई मज़दूर मुंबई महानगर पालिका में पिछले आठ-नौ सालों से लगातार साफ़ सफाई का काम कर रहे है। परन्तु मुंबई महानगरपालिका ने उन्हें उनका कर्मचारी का हक़ न देकर उन्हें ठेका प्रथा पर रखा तथा मज़दूरों की और उनके परिवार वालों की जिंदगियों के साथ खिलवाड़ किया। इन मज़दूरों को सालों की मेहनत के बाद भी वेतन के नाम पर मुश्किल से किमान वेतन मिलता है। भविष्य निर्व्हा निधि, चिकित्सा सुविधा जैसी मुलभुत सुविधाओं के लिए ये मज़दूरों सालों से तरसते आ रहे है।  परन्तु बॉम्बे इंडस्ट्रियल कोर्ट के इस फैसले ने वर्षो से देश को स्वच्छ रखते आ रहे अमुक तथा अदृश्य पीड़ित सिपाहियों को न्याय देकर

BMC ordered to make permanent 2,700 of its contract workers

http://www.dnaindia.com/mumbai/report-bmc-ordered-to-make-permanent-2700-of-its-contract-workers-2038187

26TH PROTEST AT AZAD MAIDAN

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NAUTANKI BY INDIAN GOVERNMENT IN THE NAME OF SWACHH BHARAT

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हम दोनों

तुम थोड़ी ठण्ड इधर करो मैं थोड़ी धुप सरकाता हूँ।  थोड़ा-२ बाँट लेते है दोंनो।  तुम थोड़ी गिराओ झूठ की दीवारे मैं थोड़ी सच्चाई बतलाता हूँ।  थोड़ा थोड़ा बाँट लेते है दोनों।  पुरानी यादें रुठने लगी है अब तो आओ कुछ नई यादें बनाते है।  समय थोड़ा साथ बिताते है दोनों। - Shakti Hiranyagarbha

सच की सड़क

कहा था गांधीजी ने सदा सच बोलो पढ़ाया था बचपन में मास्टर जी ने ये सत्य कड़वा होता है, सत्य की सदैव जीत होती है, किताबो में पढ़ा था हमने।  इसी कवायद से काफी कम झूट बोला हमने  फलस्वरूप  कक्षा में कम अंक पाए घर में कम मिठाई पाई मैदान में ज्यादा फील्डिंग की और कॉलेज में तो पूरी दुनिया ही आगे निकल गयी अतीत से लेकर आज तक जिद की सच की छोटी सड़क बनाने की हमने पर वो आये सच का शस्त्र लेकर और न जाने कब झूट की खाई खोद गए हमारी सड़क के नीचे और अचानक एक दिन धस गए हम उसमे कोशिश की,  बाहर निकले और फिर से निकल पड़े थोड़ी सच की सड़क बनाने फिर कोई आया अपनापन का शस्त्र लेकर साथ में सच्चाई की दुहाई लिए हुए और न जाने कब झूठ की खाई खोद गए हमारी सड़क के नीचे और अनजाने में हम धँस गए अपनी ही सड़क के नीचे।  अभी भी धसे हुए है।   सोचते है कि क्या होता अगर गांधीजी ने सच्चाई का कथन ना कहा होता किताबो ने सच्चाई का जिक्र न किया होता तब शायद हमने भी सच की सड़क बनाने की जिद न की होती शायद कोई अपना हमें खाई में न धसा पाता काश! गांधीजी ने ये कहा न होता।

किसान

मैं एक किसान हूँ, और आसमान में धान बो रहा हूँ।  लोग मुझे कहते है  अरे पगले आसमान में  भी कभी धान नहीं जमता।  मैं पूछता हूँ गेगले धोधले जब जमीन में भगवान जम सकता है तो आसमान में धान क्यों नहीं और अब तो मैं अड़ गया हूँ कि दोंनो में से एक होकर रहेगा या तो धरती से भगवान उखड़ेगा नहीं तो आसमान में धान जमेगा। 

दीदी

मैंने बचपन से अपनी दीदी को देखा उसको मालूम था कि दो छोटे भाइयों को कैसे पालना है। कब किसको लताड़ना है , किसे पुचकारना है। चोट लगे खेल में तो गेंदे का रस कैसे ढारना है और पीकर आए हो बाबूजी तो जूते कैसे उतारना है। मेरी दीदी को मेहमान बढ़ जाने पर चार कप चाय को छः  बनाने का हुनुर मालूम था। और लिट्टी बनाते हुए, उसमे भुट्टे भुनाने का गुर भी उसका बहुत खूब था। मेरी दीदी क्या खूबसूरत थी हिमालय जैसे उसकी नाक थी और रंग उसका सुंदरबन में छनती हुई धुप था सुबह जब हल्दी का उबटन लगाती थी तो लगता था कनइल का फूल है शाम को जब दिया जलाएगी तो मिस्टी मिलेगी ये मुझे मालूम था। लेकिन एक दिन मेरी दीदी, दीदी से औरत हो गई अब उस औरत से बहुत दूर था जिसका कभी मैं कभी आखो का नूर था। अब घर में गंदले मोज़े मिलते थे रुमाल सारे गुम थे,  आलू में नमक तेज था रोटिया कच्ची थी, कमिजो में बटन नहीं थे तकिये में कवर नहीं था, गद्दों में खटमल मौजूद थे जहाँ गयी थी वो औरत वहां बताते है पिताजी कि उसका बड़ा रसूख था। मै सोचता था कि कितना कमीना है वो मुच्छड़ जिसने मेरी दीदी को धोखेबाज बना दिया। खैर ढेड साल बाद मुझे बताया गया कि मेरी एक भगिनी

Safai karamcharis and Ghantagadi Workers in Thane

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Safai karamcharis and Ghantagadi Workers in Thane There are about 1400 'so called' contract workers working as Safai Karamcharis and Ghantagadi workers in the Solid Waste Management department under Thane Municipal Corporation. Safai and Ghantagadi workers are doing permanent and perennial nature job. Sweepers and Ghantagadi workers are performing statutory duty of Corporation of cleaning, sweeping, and transportation of garbage. Safai workers are doing the same kind of work for more than 12-13 years but still they have not got the status of permanent workers. Workers working under TMC are getting Rs242 per day. In Ward No. 17 (Diva Ward), workers are not even getting the minimum wages as they are getting only Rs150. There are atrocities against the workers from both sides- contractors as well as government employees. This whole contract system is 'sham' and 'bogus' according to the 'Abolition and Regulation of Contract Labour Act 1947'. In 200

Municipal Conservancy Workers in Bombay

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Municipal conservancy workers are a neglected section of our working population. The caste system in India has undergone many changes and its manifestations exist in varying degrees in different regions/occupations. Scavenging and Municipal conservancy work is one such occupation where the workforce mainly consist of a dalit community. There is thus a structural basis to the social composition of the conservancy workforce. Irrespective of their regional background conservancy workers belong to the backward classes in an undeniable fact. Apart from these differences, conservancy workers are subjected to class and caste biases in every day life. (Minimum Lives, TISS & Navjeevan Samiti Mumbai) In Bombay, the contract system is in existence from the more than past 15 years in the Municipal Corporation without providing the facility of water for drinking and washing at the sweeping, landfill sites, dumping grounds. Workers are denied access to the public transportation due t

MANHOLE OR FATALHOLE?

MANHOLE OR FATALHOLE? What happened? The Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC) has been cleaning drains in preparation for the monsoon. For this, the civic body had appointed contractors to thoroughly clean out storm water drains (SWD) and work was going on in full swing across the city. The work is undertaken every year by the BMC to save the city from possible flooding. This year, contractor RPS Mehta was awarded the contract to clean up storm water drains at Kalachowkie. On Thursday, Umakrishnan, Pandian and Anil Londhe, 24, followed the usual procedures, but did not wait long enough. They were asked to enter the drain without any safety equipment like gumboots, hand gloves, masks or oxygen cylinder. The two, Umakrishnan and Pandian, quickly entered the manhole on instruction of the supervisor and this haste proved fatal for them. When they did not return back for quite some time, Londhe was asked to follow suite and he went inside.

प्रधानमंत्री श्री नरेंदर मोदी जी को एक सफाई कामगार की गुहार

प्रधानमंत्री श्री नरेंदर मोदी जी को एक सफाई कामगार की गुहार प्रति मा . प्रधानमंत्री , सर्व प्रथम मी आपलेप्रधानमंत्रीपदी निवडून आल्याबद्दल अभिनंदन करतो . आपणही एक सर्वसामान्य कुटुंबातून येतात , त्यामुळेआपण पंतप्रधान झाल्यावर न्याय मिळण्याची एक नवीन उमेद आम्हाला मिळाली आहे . माझेनाव दादाराव बाबुराव पाटेकर आहे . मी मुंबईत चेंबूर भागातल्या एका झोपडपट्टीत राहतो . मी १९९७ पासून बृहन्मुंबई महानगर पालिकेत ( जी देशातील सर्वात श्रीमंत महानगर पालिका आहे ) सफाई कामगार म्हणून काम करत आहे . मी एक दलित असून माझेपूर्वजही अशाच प्रकारची कामेकरत . प्रती दिनी मात्र रु४० रोजानेमी ह्या कामाला सुरुवात केली . आता सुमारे१७ वर्षानंतरही माझा पगार मात्र रु३२९ आहे . आम्हाला कामावर कोणत्याही प्रकारची सुरक्षा उपकरणेउपलब्ध करून देण्यात येत नाहीत . त्याचबरोबर भविष्य निर्वाह निधी तसेच आरोग्य सोयी पासूनही आम्हाला वंचित ठेवण्यात येते . आमचेकाम कचऱ्याशी निगडीत असल्यानेआम्हाला नेहमीच वेगवेगळ्या आजारांचा सामना करावा लागतो . परंतुमहानगर पालिकेकडून ह्या संदर्भात कोणत्या
बॉम्बे हाई कोर्ट के दलित मज़दूरों की व्यथा - BALJEET बॉम्बे high कोर्ट में ६० से अधिक दलित मज़दूर रोजाना साफ़ सफाई का काम करते है। हर जगह की तरह हाई कोर्ट का साफ़ सफाई का काम भी रोजाना नियमित रूप से चलता है परन्तु यहाँ काम करने वाले लोगो का भविष्य केवल एक या दो साल के लिए टिका होता है। मतलब यू की इन लोगो को ठेकेदारो के अन्तर्गत काम करना होता है तथा ठेकेदारो के बदली होने के साथ साथ इन सफाई कामगारों को भी निकाल दिया जाता है। एक अत्यावशयक तथा नियमित रूप से होने वाले काम के कारण सफाईं के काम में कॉन्ट्रैक्ट कामगारों को रखना गैरकानूनी है। परन्तु हाई कोर्ट ने सब कानूनो की धजिया उड़ाते हुए कामगारों को अस्थाई तोर पर रखा हुआ है। केवल इतना ही नहीं ये सभी कामगार कम से कम मिलने वाली सुविधाओ से भी वंचित है। कॉन्ट्रैक्ट कामगारों को मिलने वाली आधी सुविधाये भी इन्हे नहीं मिलती। बाकि सब सुविधाये पाना तो इनके लिए चाँद पर जाने के बराबर है। महिला कामगारों को जहाँ मासिक वेतन ५७०० रुपया मिलता है वही पुरुष कामगारों को ६२०० रुपया मिलता है। उच्चतम न्यायालय के अनुसार महिला तथा पुरुष दोनों को सा

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को एक सफाई कामगार की गुहार

 प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को एक सफाई कामगार की गुहार प्रिय प्रधामंत्री जी, सबसे पहले मैं आपको प्रधानमंत्री बनने पर बधाई देना चाहता हूँ। आपका हमारी तरह एक गरीब घर से ताल्लुक रखने के कारण आपकी जीत ने हमारे अंदर न्याय पाने की एक उम्मीद जगाई है। मेरा नाम दादाराव बाबुराव पाटेकर है तथा मैं मुंबई के चेम्बूर में एक झोपड़पट्टी में रहता हूँ। मैं १९९७ से बृहन्मुंबई महानगर पालिका (जो कि हमारे देश की सबसे अमीर महानगर पालिका है) में एक सफाई कामगार के तोैर पर काम करता हूँ। मैं दलित हूँ। मेरे पूर्वज इसी काम से सम्बन्ध रखते थे। मैंने महानगर पालिका में ४० रुपए से शुरुआत की तथा १७ सालो की मेहनत के बाद भी मेरी पगार ३२९ रुपए है। हमें काम पर किसी तरह का सेफ्टी इक्विपमेंट नहीं मिलता। इसके साथसाथ हमें चिकित्सा, भविष्य निर्वाह निधि से भी वंचित रखा जाता है। हमारा काम कचरे से सम्बंधित होने के कारण हमें अक्सर बिमारियों से जूझना पड़ता है। परन्तु हमें महानगर पालिका से किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिलती, हमें बीमार होने की स्तिथी में एक भी छुट्टी नहीं मिलती। मेरे बच्ची पहली कक्षा में है। मैं उस
http://www.financialexpress.com/old/ie/daily/19990722/ige22050p.html HC holds out hope for 800 contract workers EXPRESS NEWS SERVICE MUMBAI, JULY 21: The Bombay High Court today gave around 800 garbage disposal contract workers who have been idle since June 1999 hope for survival. A division bench of Justice M B Ghodeswar and Justice B N Srikrishna in an interim relief directed that the Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC) ``consider the offer made by the workers that they will be willing to work under direct supervision of the BMC officers for cleaning the city, at a minimum wage of Rs 100 per day''. The interim order follows an exhaustive hearing by the division bench that took almost the entire day since Tuesday. The final order has been reserved for July 30. The bench is hearing for final disposal a petition filed by the Kachra Vahatuk Shramik Sangh (KVSS) that is pleading that the BMC be directed to abolish contract services for debris removal an
http://proxied.changemakers.net/studio/02july/kishore4.cfm

Thane Municipal Corporation Workers' Protest on 30th June 2014

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One more caste is born out in our society, caste of 'so called' contract people. Today, at every workplace (both at public and private) we have this new force of contract workers. And each day this force is getting bigger and bigger, and engulfing more number of people into its category. Now, there are castes within this new system of caste and these castes arises because of the difference of the background of the people coming to this new caste system. But for now I would like to comment only on the new caste system of contract workers. These 'so called' contract workers caste started taking new shape mainly after 1991 when India adopted policies of liberalization. Labour laws were loosen up after 1991 and government started declining its role in framing labour policies and in these twenty years one anti labour environment has been created. Now in this new working environment contract workers are suffering at the most. There has been decline in the social, physic