दोस्ती, सपने और एक टूटी फूटी सड़क



दोस्ती, सपने और एक टूटी फूटी सड़क

एक टूटी फूटी सड़क पर दो साइकिलें धीरे धीरे चल रही है। जिनमे एक साईकिल रह रह कर चर -2 की आवाज़ निकालती है। और उन साइकिलों पर बैठे महानुभव लोग एक बेहद ही पेचीदा विषय 'सपने' पर बहस करने लगे जिससे साइकिलों की गति और धीमी पड़ गयी। दोनों दोस्तों ने सपने 'विषय' को अलग अलग अंदाज़ से पेश किया -
सलीम- यार! कुछ बड़ा करने का मन है। बहुत बड़ा! देखना एक दिन तेरा ये दोस्त बड़ा आदमी बनेगा।
आकाश: अरे! बस कर। यहाँ दसवी कैसे पास हो इसका ठिकाना नहीं है और एक ये भाईसाहब है जो बड़े बनेंगे। कल अगर मैं तुझे गणित की परीक्षा में नक़ल नहीं कराता तो जीरो तो पाता ही साथ में उस लकड़भग्गे (मास्टर का प्यारा नाम) से डंडे भी खाने पड़ते।
सलीम: हाहाहा। आकाश तू कमाल का आदमी है यार। गणित की परीक्षा और तू... बस जिंदगी भर चिपके रहना इस गणित से।एक दिन मास्टर जीईईईई तो बन ही जाएगा।
गहरे खड्डे की वजह से सलीम की साईकिल जरा लड़खड़ा गयी। इस पर आकाश की हंसी छूटती है।
आकाश: हाहा। देखो जी बड़ा आदमी। अरे दिन में सपने देखते चलेगा तो यही हाल होगा। देख सलीम! तू मेरा बचपन का दोस्त है इसलिए तुझसे कहता हूँ कि ऐसे सपने ना देखा कर जो पुरे ही ना हो।
सलीम: हाँ बे! तू अपने सपनो की ना, जीवन बीमा पालिसी करा दे। क्योंकि ये ना बस कुछ दिन ही चलने वाली है। अरे देखना यार जब तेरा भाई फोर्टुनर खरीदेगा। एक दम सफ़ेद चमचमाती और काले शीशे वाली।
आकाश: भाई हम गरीब इंसान को भी याद रखना। भूल मत जाना देख अ।
सलीम: अरे तू तो अपना एकदम जिगरी है रे।
आकाश: हम तो यार यही इस गाँव में ही खुश है। बस भगवान की दया से कही छोटी मोटी सरकारी नौकरी मिल जाए, हम तो अपने आप में ही अम्बानी (in high pitch) होंगे।
सलीम: यार तू ना बस छोटा ही सोचना। पागल तू इंटेलीजेंट है, क्लास में तेरा दूसरा नंबर आता है, क्या क्रिकेट खेलता है साले तू। तुझे तो क्रिकटर बनाना चाहिए।
आकाश: तेरे भाई की क्रिकेट में तो देख आस पास के गाँव में धूम है। पर ये क्रिकेट के खेल में ऊपर जाने के लिए यार पैसे चाहिए होते है।
(बात काटते हुए) सलीम : उससे भी ज्यादा हिम्मत। और वो तुझमे है नहीं। देख जब तू स्टेट लेवल पर खेलना चाहेगा तो जिला लेवल पर संघर्ष करना पड़ेगा। ये समझ ले स्टेट लेवल पर सिलेक्शन नहीं हुआ पर इस परिक्रिया का मजा तो ले लेगा।
आकाश: हाँ। और पढाई का क्या? बेटा, एक बार इस खेल के चक्कर में धँस गया तो धोबी का कुत्ता बन जाऊंगा और कही का नहीं रहूँगा।
सलीम: साले तू आदमी है या पजामा? तू पैदा ही क्यों हुआ? अपनी माँ के पेट में ही रहता। कम से कम आज यहाँ साईकिल भी नहीं चलानी पड़ती।
आकाश: साहब जी। हम तो आपको देख कर ही खुश हो लेंगे। तुम ही देखो ये हवाई सपने।
सलीम: देख भाई सपने ना केवल हमें उम्मीद जगाते है। बल्कि साथ ही साथ हमें रोजाना की इस मचमच से छुटकारा भी दिलाते है।
इन सब बातों में ही लगभग तीन किलोमीटर का सफर तय कर चुकी सलीम और आकाश की साइकिल धीमे धीमे लगातार चरमिराती हुई अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही थी कि इतने में पास ही के स्कूल की 4-5 लड़कियां आपस में हंसती हुई सलीम और आकाश के बगल से गुजरती है। तो सहसा सलीम के मुँह से आवाज़ निकलती है।
सलीम: ओए आकाश! देख तेरी वाली जा रही।
आकाश: कहाँ मेरे वाली भाई ? वो तो आजकल बिलकुल भी घास नहीं डाल रही।(कहकर गर्दन हिलाता है)
सलीम: अच्छा अब समझा! लड़कियां पटने के बाद घास खिलाती है। भाई फिर तो मैं ना पटाने वाला लड़की वडकी।
आकाश: साले, हरामी, तू फ्री के मजे लूट रहा है यहाँ तेरा भाई इसके प्यार में मरा जा रहा है।
सलीम:  हाय मेरे शारुख खान! अरे तो जाकर बोल क्यों नहीं देता?
आकाश: हाँ, इतना आसान है! जब देखो तब वो अपनी इन चिरकुट दोस्तों से घिरी रहती है और घर पे इसकी वो डायन माँ है अगर मुझे उसके आसपास भी देख लिया तो मुझे कच्चा चबा जाएगी और डकार भी नहीं लेगी।
सलीम:  वाह  भाई वाह ! आप तो बहुत ही बड़े न्यायाधीश निकले। अपनी खुद के मोहतरमा तो बेगम और बाकि सब चिरकुट और डायन।
आकाश: हरामखोर तू हर बात का बतंगगढ़ ना बनाया कर। बता रहा हूँ मैं तुझे।

सलीम: वरना? अच्छा! देख भाई ऐसा बिलकुल मत करियो वरना अखबारों में खबर आएगी।(तेज आवाज़ में) ये देखिये किस तरह एक जालिम ने अपने प्यार की खातिर अपने जिगर के टुकड़े, अपने दोस्त का भरे दुपहर में कत्लेआम कर दिया।
आकाश: हाहा, साले कहा से लाता है तू ये सब?
ये सब चल ही रहा था कि  दोनों साईकिल अपने गावों की सीमा में प्रवेश कर गयी जिसके साथ ही सड़क तथा खेतों में जाने पहचाने लोग नजर आने लगे। सलीम और आकाश को बार बार हाथ उठा कर लोगों  को नमस्कार करना पड़ता। जिससे दोनों दोस्तों में अचानक चुप्पी सी छा गयी थी कि इतने में ही सलीम का खेत आ गया। इससे  पहले  कि  सलीम   छुप  छुपाकर   निकलने  की  कोशिश   करता   आकाश   ने  हाथ  उठाकर   सलीम  के  अब्बू  को  आदाब   अर्ज  किया   - नमस्कार   चाचा  जान। बस  फिर  क्या  था  सलीम   को  चाय  के  साथ  फ़ौरन  खेत  में हाज़िर  होने  का  फरमान   जारी  कर  दिया  गया  . इस  फरमान    ने  तो  एक  पल  के  लिए सलीम   के  सब  सपनो   पर  जैसे   JCB चला   दी  हो। और  उसके चेहरे को जैसे सांप सूंघ गया हो। पर  जैसे  ही  साइकिलों    ने  सलीम   का  खेत  पार  किया   सलीम   ने  तुरंत  जोर से आकाश को थप्पड़   मारते   हुए  कहा  - हरामखोर, साले  नमस्कार   करना   जरुरी   था। वाट लगवा   दी  ना। अब  आना   पड़ेगा  खेत  में। मुझसे खेतों   में  काम   कराते  है। क्योंकि जानते नहीं है कि मैं कौन हूँ और क्या बनने वाला हूँ।
आकाश :  हाहाहा। भाई  बड़े  आदमी   अब  खेत  में चाय   लेकर  आ जाना।  नहीं  तो  चचाजान  तुझे  मार  मार  कर  बड़ा  कर  देंगे।
सलीम : कुत्ते , ये तेरी वजह से हुआ है। जिन्दगी में साले दोस्त भी मिले तो तेरे जैसे  कमीने  ही  मिले।
और  ये  सब  बातें  कर ही रहे थे कि सलीम और आकाश का गावं आ गया।सलीम और आकाश की दोस्ती की गाँव के हर घर में धूम थी। कुछ लोग समय पाकर उनकी दोस्ती पर ताना मारना नहीं भूलते। रोजाना दोनों के घर में ज्यादा खाना बनता था कि ना जाने कौन किसके घर खाना खाएगा। चुप्पी तोड़ने के लिए दोनों दोस्त किसी फिल्म पर बात करने लगे। उनकी साईकिल की गति बढ़ गयी। गाँव के कुछ घर पार करते ही तालाब के किनारे खाली पड़े मैदान में कुछ बच्चे वॉलीवाल खेलते नजर आने लगे। साइकिलों के मैदान के पास पहुँचते ही कल्लू दौड़ते हुए आया और सलीम की साईकिल के सामने खड़ा हो गया।
कल्लू : अरे सलीम मियां। कहाँ साईकिल लिए दौड़े जा रहे हो। चलो वॉलीवाल में दो दो हाथ हो जाए।
सलीम : अरे नहीं यार वो अब्बु ने खेत में चाय लेकर बुलाया है। तुम तो जानते हो अगर अब्बा का हुक्म नहीं माना तो रात में घर पर चावलों के साथ मुर्गे की हड्डी के बजाए मेरी बोटी खाई जाएगी।

कल्लू : क्या मियां ? आप खामखां चचाजान को बदनाम कर रहे है। अरे उनके जैसा नेक इंसान तो इस धरती पर एक आधा ही बचा होगा।
सलीम : बस कर। बस कर। बड़ा निकला चचाजान की तारीफ़ करने।  अरे इतना ही प्यार आ रहा है अपने उस चाचा पर तो आजा उसके साझे क्यों नहीं हो जाता ?

कल्लू : नहीं भाई हमें तो अपना घर पर ही ठीक है।

कल्लू की बात खत्म करने से पहले ही मनीष की आवाज़ आती है।

मंजीत (दूर से आवाज़) : ओए सलीमें! क्या हुआ भाई ? दो-दो हाथ हो जाए ?

कल्लू : कह रहा है.. इसके पास वक्त नहीं है।

कल्लू की बात पूरी करने तक मंजीत वहाँ पहुँच जाता है। सलीम के कंधे पर हाथ रखते हुए।

मंजीत :
ओए चल यारा ! एक मैच खेल के चले जाना।10 मिनट लगने है कोई पहाड़ नहीं टूट जाना। और हम कौनसा तुझे पूरी रात पकड़कर रखने वाले है। ओए आकाश आजा यार तू भी आ जा। कभी तो हमारे साथ भी खेल भी खेल लिया कर। 

सलीम : चल आकाश। एक पारी खेल कर चलते है।

आकाश : भाई तू खेल मैं तो चला। खुद भी मरेगा हमें भी मरवाएगा।( चलते हुआ ) और सुन। परसो अंग्रेजी तो टेस्ट है। ध्यान रखियो।

सलीम : ठीक है।  बस एक मैच खेल कर आता हूँ।

सलीम : चल कल्लू तेरा भी दम देख लेते है। आज बेटा मैच में अगर तेरी नाक नहीं रगड़वाई ना तो देखना मेरा नाम भी सलीम नहीं। 

कल्लू : बापू माफ़ कर दे। गलती होगी।  हाहा। साले चल अपनी टीम संभाल।

वॉलीवाल मैच का दृस्य। धुल भरे मैदान में कुछ दस बारह बच्चे खेलते हुए। थोड़ी सी दुरी पर तालाब किनारे लगे हैंडपंप से कुछ लड़कियां पानी भरते हुए। जिनमे एक लड़की हाथ में मटका लिए खेल रहे लड़कों की और टकटकी लगाये देख रही है। दो औरते वही बैठी अपने बर्तन मांज रही है और एक औरत (नए कपडे पहने हुए ) हैंडपंप चला रही है।




और थोड़ी देर बाद उंनका सफर रोजाना की तरह पड़ाव पर आ गया।

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