गुरुवार, 6 अगस्त 2015

खूनी उम्मीद

उसने पूछा - भगवान है ?
मैंने कहा - नहीं।
उसने कहा - अरे पगले ! उसके बिना इतनी बड़ी दुनिया कैसे चलती?
मन ने कहा - उसकी दुनिया कहाँ चली जो
कल माँ के हाथों में दम तोड़ गया।
और वही आज कोई हजारों लाशों पर
कागज के टुकड़ो के सहारे जी गया।

उसके दिमाग ने कहा - कुछ समझ नहीं आया।
अजी उनकी गर्दन ने तो हमको पागल ही
करार दे दिया
शायद उसी बाजार की तरह जहाँ सच
कुरान, गीता, और बाइबिल
की तर्ज पर बड़बड़ाती जबानो के हाथों बिक गया।

यकीन मत मानिये
क्योंकि इसी यकीन पर
एक और शख्श पहचान बना गया
शायद वो भी बाकी की तरह
उम्मीद की सलाखों पर चढ़ गया।

सलीम हिंदुस्तानी आज उम्मीद इतनी जिंदादिल कहाँ?
कही कोई उसके सहारे पुण्य पा गया तो कही जिहाद
तो वही आज फिर से कही धरती माँ का सीना
खून से भर गया।

सलीम हिंदुस्तानी 

पारो और चाय - अध्याय ३

अन्ना की टपरी पर दस्तक देते ही सामने खड़ी पारो जोर से सलीम को गले लगा लेती है ये कहती हुई -आज मैं बहुत खुश हूँ सलीम। सच में बहुत खुश।

सलीम बस कन्धा बना खड़ा रहता है। फिर पारो उसके दोनों कंधो को पकड़कर सलीम की तरफ देखते हुए कहती है -I Love Akash. You know yesterday he came to my house with chocolates, cake and roses. That was a such a great surprise yaar. I was very happy. मैं सातवें आसमान पर हूँ।

सलीम: पर मुझे तो तू यही दिख रही है।

पारो: हाहाहा। मजाक मत उड़ा मेरा। चल अाजा चाय पीते है।

सलीम : नहीं यार, आज चाय पीने का मन नहीं है। बस सिगरेट पीऊंगा।

पारो: ओये क्यों? चल पीले पीले। यार अन्ना की चाय भी ना एक पल के लिए बस.... सब कुछ भुला देती है।

सलीम: सच में? फिर तो तेरे को ये भी याद नहीं होगा की मैं कौन हूँ? आकाश तो याद रहता है ना या उसे भी भूल जाती है।

पारो: हरामी, साले। बस कर। जब देखो तब बकवास चालू कर देता है।

सलीम: हाँ भई, हमारी बातें तो बकवास ही लगेगी और आकाश की बातें तो कोयल की सी बोली।

पारो: मार खाएगा या अपने आप चुप होगा।

सलीम : अच्छा चल ये बता, आकाश इतनी सारी चीज़े लाया कैसे? उसे तो टूथब्रश भी नहीं खरीदनी आती।

पारो: वही तो। उसने मेरे लिए कितने सारे efforts लिए। बहुत क्यूट है यार वो।

सलीम: ( दबी आवाज़ में) हाँ लड़का अच्छा है।

पारो : बस, बस। ज्यादा बड़ाई मत कर। इतना तो हर कोई करता है। मुझसे अच्छा नहीं है वो। ये बता तेरा काम कैसा चल रहा है।

सलीम: बस कट रही है जिंदगी। कर बार ऐसा लगता है की पूरी जिंदगी इस कंप्यूटर के सामने ही कट जाएगी।

पारो: हां यार, क्या क्या सपने देखे थे जब कॉलेज में थे कि नौकरी लगने के बाद ये करेंगे, वो करेंगे, पूरी दुनिया घूमेंगे। अब यह साला घर जाने का भी टाइम नहीं है।

सलीम: कॉलेज के भी दिन थे यार। मत याद दिला उन्हें। रोना आता है।

पारो: हाँ सबका हाल ऐसा ही है। सब मशीन बन चुके है। चल चलते है। तेरा मोटू तो कुछ नहीं कहेगा पर मेरा सडु तो पुरे ऑफिस को अपनी भद्दी गालियों से भर देगा।

सलीम हु की आवाज़ के साथ गर्दन हिलाते हुए चल देता है।

सलीम हिंदुस्तानी


बुधवार, 5 अगस्त 2015

पारो और चाय - अध्याय २

आज पारो तोड़ा जल्दी आ जाती है जिससे सलीम की चाय और सिगरेट तैयार रहती है। पर पारो आज सिगरेट का पफ जल्दी जल्दी मारते हुए इधर कुछ ज्यादा ही देख रही है। सलीम साहब से ये सब देखकर कहा रुका जाता। ये सब देखकर बैठते हुए तुरंत बोले -
सलीम: क्या बात है? आज महारानी जी का नाक थोड़ा चढ़ा हुआ लगता है। तबियत कुछ ठीक नहीं है?

पारो: यार ये लड़के सब एक से क्यों होते है?

सलीम अपनी तरफ भौचक्की निगाहों से देखता है और कुछ अंतराल के बाद कहता है।

सलीम: क्यों आकाश ने कुछ कह दिया क्या?

पारो: नहीं! समस्या तो यही है। वो कुछ कहता ही तो नहीं। देख, आज मेरा जन्मदिन है और उसने मुझे अभी तक फोन नहीं किया है। कोई किसी का जन्मदिन कैसे भूल सकता है यार।

सलीम: अरे! आज तेरा जन्मदिन है ? हैप्पी बर्थडे यार ! जन्मदिन मुबारक हो। पर कम से कम आज तो छुट्टी ले लेती।

पारो: कहा यार। इतना काम पड़ा है। कौन करता फिर?

सलीम: अच्छा अब ये सब छोड़। ये बता क्या गिफ्ट लेगी अपने जन्मदिन पर ?

पारो: नहीं मुझे कोई गिफ्ट विफ्ट नहीं चाहिए।

सलीम: ऐसे कैसे हो सकता है। बोल तुझे क्या चाहिए ? अच्छा चल ये बता बर्थडे पार्टी के लिए कहा चलना है?

चाय की चुस्की लेते हुए पारो: आज नहीं यार ! फिर कभी चलते है आज रूममेट्स के साथ प्लान बना हुआ है।

सलीम: चल कोई ना। अप्पन फिर कभी चलेंगे।

पारो: हाँ। पक्का।

सिगरेट का पफ आज सलीम के पैरों से थोड़ा जोर से कुचला जाता है। तो वही पारो एएएएएए की आवाज़ निकाले बिना ही अपने ऑफिस की ओर रुख करती है। सलीम कुछ देर अपने ऑफिस की तरफ  चलता है और फिर वापस आकर सिगरेट जलाते हुए अन्ना से एक और चाय की फरमाइश करता है।

सोमवार, 3 अगस्त 2015

पारो और चाय


सिगरेट और चाय अनजान से अनजान इंसानों में भी एक छोटा सा रिश्ता बना देती है और ये रिश्ता चाहे कितना छोटा क्यों ना हो पर जिंदगी से हसीन यादें जोड़ देता है।  सलीम का भी ऐसा ही रिश्ता बना पारो से जब वो नौकरी की वयस्त रसहीन जिंदगी को हल्का बनाने के लिए दोपहर तीन बजे रोजाना अन्ना की टपरी पर आया करता। दोंनो चाय की चुस्की और सिगरेट के कश के साथ अपने बॉस की रोजाना अजीब किस्म की बुराईयाँ गिनाते तो अक्सर अपने निजी रिश्तों को भी चाय के नशे के कारण एक दूसरे के सामने बखेर देते।

                            अध्याय -१

आज पारो अपनी रूममेट का अध्याय चालू करती है।
पारो: यार मेरी रूममेट भी ना रोजाना अपने बॉयफ्रेंड पर गुस्सा करती रहती है। अगर वो एक दिन भी फोन ना करे ना तो बेचारे को अगले दिन सो सो मन (४० किलो) की गालियां खानी पड़ती है।

सलीम: हर किसी लड़के के नसीब में ये ही तो लिखा है। हर लड़की अपने बॉयफ्रेंड के साथ यही करती है।

पारो: ओए! मैं ऐसा बिलकुल भी नहीं करती। मैंने आकाश पर आजतक कोई जबरदस्ती नहीं की। उल्टा वो मुझे फोन कर-कर परेशान करता रहता है।  पता है... उसकी टूथब्रश तक मैं लाती हूँ।  उसको ना..शॉपिंग बिलकुल भी नहीं आती। मगर मैं उसके साथ जबरदस्ती नहीं करती कभी भी। उसके हाँ करने पर ही मैं उसे शॉपिंग ले जाती हूँ। हमारी रिलेशनशिप को आज पूरा डेढ़ साल हो चूका है और आजतक मैंने उससे कुछ नहीं माँगा।

सलीम: बस कर। ज्यादा शेखी ना मार। वैसे.. हर लड़की अपने बारे में यही कहती है।

पारो: हेलो जी। मैं तुझे रोतड़ू लगती हूँ। if you dont believe me then you can call Akash! कितना लक्की है वो। है ना यार!!

सलीम सिगरेट के बट को अपने पैरों से कुचलता है तो वही पारो उत्सुक निगाहों से सलीम को देखती हुई दोनों के चाय के कप को कूड़ेदान में डालती है। सलीम के कुछ ना कहने पर पारो हल्के जिद्दी स्वर में पूछती है - बताओ ना? क्या मैं तुम्हे बाकी लड़कियों जैसी लगती हूँ ?

सलीम ना में गर्दन हिलता है और पारो यईईए की आवाज़ निकालती हुई अपने ऑफिस की तरफ चली जाती है तो सलीम भी हल्की मुस्कराहट के साथ अपनी ऑफिस दी दुनिया में लोट जाता है।

क्या आपकी जिंदगी भी सलीम और पारो के मोड़ से गुजरी है? अपने अनुभव हमारे साथ साझा करे।
धन्यवाद!

सलीम हिंदुस्तानी  

सरकारी स्कूल अच्छे है ।

यह गाँव का आँगन है ।  ज्ञान का प्रांगण है ।  यहाँ मेलजोल है ।  लोगों का तालमेल है ।  बिना मोल है फिर भी अनमोल है ।  इधर-उधर भागता बचपन है । ...