शनिवार, 24 सितंबर 2016

देश के जज्बाती युवाओं के नाम एक खुला पत्र

देश के जज्बाती युवाओं के नाम एक खुला पत्र

मित्रों,
इस खत को लिखते वक़्त ना ही मैं गर्व महसूस कर रहा हूँ और ना ही निराशा। पर हाँ एक अजीब की सिकुडन में फंसा हुआ लगता हूँ। आज जब कभी मैं सोशल मीडिया पर देश के भविष्य की टिप्पणियां पढता हूँ तो मुझे लगता है कि आज का युवा केवल सही और गलत की बंटाधार लड़ाई में बट चूका है। वो शायद अपनी तर्कसंगत वाली पहचान खो चूका है या उसकी सोचने की शक्ति पर पहरा है। 
नई सोच की उम्मीदों वाले देश में ही आज सोचने पर पहरा लग गया है  और ये पहरा किसी और ने नहीं हम सब ने अपने आप लगाया है।  ऐसा नहीं है कि ये कोई नई चीज़ है या इत्तिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। परंतु आज की आधुनिक दुनिया ने सोचने की अक्षमता को कई गुना शक्ति प्रदान की है . ऐसे व्यक्ति जिनको देसी भाषा में भेड़ चाल चलने वाला कहा जाता है एक दायरे में आ गए है। उनको अपने आपको सही करार देने का मौका हाथ में मिला हुआ है। स्तिथि यह है की एक इंसान अपने आपको सही करार देता ही है की उसके दायरे (साझी सोच) वाले लोग उसको महान बताकर उसका प्रचार प्रसार करने लग जाते है। तो वही उसके विपक्षि  (विरोधी सोच) वाले लोग उसे झूठा साबित करने में लग जातें है 
और यहाँ से शुरू होती है पक्ष विपक्ष की लड़ाई। अगर आप किसी एक दायरे के पक्ष में है तो आपको विपक्षी दल को झूठा साबित करना ही करना है। एक बार भी आप उस पर सोचने का भार नहीं डालना चाहते। अगर आपको लगा कि विपक्ष सचमुच सही है तो मन ही मन बोलोगे - अरे यार ! कह तो सही रहा है लेकिन अपने दायरे का थोड़े ही है।  आप या तो उसके विरोध में कहानी चालु रखोगे या उसको सच्चे दिल से ignore मार दोगे।  
आज आपने इतिहास को भी इसी तरह बात दिया है और देश के लिए कुर्बानियां देने वाले क्रांतिकारी आपके दायरों में बात गए है .सबने अपनी अपनी सुविधानुसार क्रांतिकारियों पर अपना हक़ कब्ज़ा लिया है। सच्चाई की तह तक जाए बगैर आपने इधर उधर से अपनी सोच वाली सामग्री इकठ्ठा कर उसको अपने हिसाब से इतिहास बना दिया है। और आपके दायरे के लोग उसका प्रचार प्रसार करने में लगे है। सोचिये क्या होता अगर आज़ादी के समय हमारे देश के भविष्य निर्माता इस तरह आपस में एक दूसरे पर कीचड़ उछालकर लड़ रहे होते।  ऐसा नहीं है कि वो सब एक सोच रखते थे बल्कि उनके सबके अपने स्वतंत्र मत थे . और उन्होंने अपने मतों की पूरी व्याख्या भी दी है। पर जब देश की बात आती थी तो वो सब अलग-अलग मतों वाले लोग एक साथ आकर बैठते थे और विपक्षी मतों को समझकर ध्यान में रखते हुए सही निर्णय निकालते थे। कुछ लोग बड़ी आसानी से कह देते है कि आज़ादी के तुरंत बाद ऐसा ही होता है, उनके पास एक साथ बैठने के अलावा कोई और चारा नहीं था। हालांकि बहुत से देशों में ऐसा नहीं हुआ और आज वो देश वापस गुलामों की बेड़ियों में जा चुके है। 
चलिए मैं आपको इतिहास से वापस वर्तमान मैं लाता हूँ आपके प्रिय नेता के पास। ऐसा लगता है कि आपने किसी एक नेता के बारें में बोलने की आज़ादी का पंजीकरण करा लिया है।  अब आपके नेताजी पर जो कोई टिपण्णी करेगा आप उसे तुरंत दायरे में डाल लोगे। अगर आजकल आपको कोई युवा खूश और तंदूरस्त दिखे तो समझ जाना उसके विपक्ष का भरपूर मजाक उड़ाया जा रहा है . 
देश का युवा आज गाडी का वो पहिया बन चूका है की उसको राजनीतिक पार्टियां जहाँ ले जाना चाहती है वहां  ले जा रही है।  राजनीतिक पार्टियों की फिट की हुई चाबियाँ आपकी सोच पर इस कदर आती पालती मारकर बैठ गयी है कि जब वो चाहे, जिधर चाहे, आप उसी वक़्त उधर चलने लग जाते है। जिस तरह गुलाम व्यक्ति नशे में ही अपनी आज़ादी को महसूस कर पाता है उसी तरह एक दूसरे की बुराई या बर्बादी पर ही आपकी आज़ादी की अभिव्यक्ति टिकी हुई है।  सलाह देने की औकात तो नहीं रखता पर इतना जरूर कहूंगा कि वो अपनी स्वतंत्र सोच रखे।  अपने नेताओं और चहेतों से सवाल करे और अपने विपक्षियों से मुद्दे पर चर्चा करे।  

राम-राम 

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

इंतज़ार


आज तुम अभी तक नहीं आई हो, मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी। याद है जब तुम पहली बार आई थी तब से ही तुम मेरी चहेती बन गयी थी। तुम जब सीना तानकर मेरे सामने खड़ी होती तो लगता कि मेरे हठपन को चुनौती दे रही हो। तुम कहती कि मैं तुम्हारे रास्तें में रुकावट बन कर खड़ी  हूँ और तुम्हे मंजिल पहुँचने में बेवजह देरी पहुंचाती हूँ। तुम सही भी थी क्योँकि तुमको ना जाने कितनी बार मुझसे और मेरी सहेलियो से टकराना पड़ता था। क्या करे हमारी मंजिल भी यही और हमारा घर भी यही। हमें तो रोजाना बस एक जगह खड़े खड़े तुम जैसो को सलामी ठोकनी पड़ती है। आखिर हमारा नसीब तुम्हारे जैसा कहाँ, जो पूरा शहर घूमने को मिलें। ना जाने कितने ही चेहरे अलग अलग प्रतिक्रिया लिए हुए तुम्हारे साथ सफर करते है। वो सभी तुम्हारे साथ मंजिल को पाने की दौड़ में शामिल हो जाते हैं। कुछ थोड़े दुखी होते है, तो कुछ उत्साह से भरे हुए, कुछ तुम्हे समय पर आता देख ख़ुशी से झूम उठते है तो कुछ तुम्हारे लेट होने की वजह से जमाने से लेकर मौसम तक और नेताओ से लेकर अपनी नौकरी सभी चीजोँ को बारी बारी कोसते है। हालांकि तुम्हे देखते ही सब-कुछ भुलाकर दौड़ पड़ते है अपनी मंजिल के रास्तो का हमसफ़र बनाने। कुछ की मंजिल थोड़ी पास होती है तो कुछ की थोड़ी दूर।

कमबख्त तुम भी लोगो के साथ बड़ी दुभात करती हो। कुछ को अपने आँचल में बिठाती हो तो कुछ को खड़े खड़े ही उसकी मंजिल तक ले जाती हो। पर पता है हमारे साथ सभी लोगोँ का एक सा बर्ताव रहता है। सभी हमारे चेहरो को अपनी निगाहोँ से देखते है। हाँ कुछेक के चेहरे पर लाचारी भी झलकती है। सभी बस जैसे हमारे चेहरे बदलने का इंतज़ार करते है।  पता है जब हमारा चेहरा लाल होता है (वो गुस्से वाला) तो लोगोँ का चेहरा उतर जाता है। बड़ा मजा आता है कमबख्त लोगोँ की मजबूरी देखकर।जैसे ही हमारे चेहरे का रंग बदलता है बस चालु हो जाती है उनकी भागदौड़ और हर कोई एक दूसरे से आगे निकालना चाहता है।

अरे हाँ ! मैं तो भूल ही गई। बातें करते करते ना जाने मैं कहा भटक जाती हूँ। हाँ तो वो ये कि जब तुम आई थी तो तुम्हारे जैसे हमसे टकराने वाले बस कुछ ही थे पर आज देखो कैसे चीटीँयो की भाँती भीड़ लगी हुई है।तुम हमेशा से एक ही सूट पहनती हो वो लाल, पीले पीलें छीटों वाला। और तुम्हारे सूट पर दूर से चमकता है - १५१।  जिसे देखते ही धड़कने जैसे थम सी जाती है।  मन करता है बस दिन भर तुम्हे घूरती रहूँ और तुम यही मेरे पास खड़ी रहो। पर तुम चली जाती हो मुझे छोड़कर और मैं यही रंग बदलती रह जाती हूँ। 

मालूम नहीं आज मुझे सुबह से ही थोड़ी घबराहट सी होने लगी थी और फिर पता चला कि तुम आज नहीं आ पाओगी। किसी ने बताया की तुम्हे जला दिया गया है। आये थे कुछ लोग झुंड़ हाथ में तलवारे और मशाले लिए हुए अपने मजहबी धर्म का बदला लेने। और सामने दिखाई दी तुम एक गूंगी बहरी।  एक बार तो मुझे तुम पर भी गुस्सा आया कि तुम वहां क्या करने गयी थी।  क्या जरुरत थी तुम्हे वहां जाने की। पर फिर ख्याल आया कि ये तो तुम्हारा काम था और वैसे भी पिछले १२ सालों से भी वहां जा ही रही थी। किसी ने ये भी बताया कि जलाने से पहले तुम्हारे साथ बहुत मारपीट हुई।  तुम्हारी आँखों को फोड़ा गया , जिस्म को जगह जगह से कुरेंदा गया। ये सुनकर तो मेरी रूह ही काँप जाती है।  मन करता है कि तुम्हारे साथ ये सब करने वालों को इतना मारू इतना मारू  .... क्या बिगाड़ा था तुमने उनका।  बस यही कि रोज तुम ऐसे लोगों को अपने aanchal से लगाती।  ऐसे लोगों को जो आज तुम्हारे खून के प्यासे हो गए।  पता चला है कि कल तुम्हारी जगह कोई और ले लेगी। naa जाने कैसी होगी वो। तुम्हारी तरह मुझसे नजर मिला पाएगी या नहीं, पता नहीं।  

सरकारी स्कूल अच्छे है ।

यह गाँव का आँगन है ।  ज्ञान का प्रांगण है ।  यहाँ मेलजोल है ।  लोगों का तालमेल है ।  बिना मोल है फिर भी अनमोल है ।  इधर-उधर भागता बचपन है । ...